पिछले कुछ सालों से सर्दी का मौसम शुरू होते ही दिल्ली के आसमान में धुंध की परत गहराने लगती है। इसकी मुख्य वजह हवा में लगातार प्रदूषक तत्त्वों का बढ़ना है। मौसम गरम होने पर जो धूल और धुएं के कण आसमान में कुछ ऊपर होते हैं, वे सर्दी बढ़ने के साथ-साथ नीचे खिसक आते हैं। फिर गाड़ियों से रोजमर्रा निकलने वाला धुआं और भवन, सड़क निर्माण वगैरह की वजह से उड़ने वाली गर्द उसमें मिल कर स्थिति को चिंताजनक बना देते हैं। इसके चलते लोगों को फेफड़े और आंखों की तकलीफ बढ़ जाती है। चिड़चिड़ेपन की शिकायत रहने लगती है। इस बार भी वातावरण में ठंडक बढ़ने के साथ ही यह समस्या फिर से पैदा हो गई है। अब इंतजार है कि बारिश हो या तेज हवा चले तो प्रदूषण की यह परत टूटे।

इस वक्त दिल्ली की हवा में तय पैमाने से ढाई गुने से अधिक प्रदूषक तत्त्व घुले हुए हैं। दिल्ली की आबोहवा सुधारने के लिए अदालतें कई बार सरकार को निर्देश दे चुकी हैं, जिसमें वाहनों, औद्योगिक इकाइयों आदि से निकलने वाले धुएं और विनिर्माण कार्यों की वजह से उठने वाली गर्द पर काबू पाने के उपाय भी सुझाए गए थे। मगर इस दिशा में अब तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया जा सका है। यही वजह है कि दिल्ली दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शुमार है।

हवा में प्रदूषण की वजहें छिपी नहीं हैं, मगर उन्हें दूर करने के व्यावहारिक उपाय जुटाने में सरकारें प्राय: शिथिल हैं। पिछले दिनों एक अध्ययन से पता चला कि राजधानी में प्रदूषण का स्तर बढ़ाने में सबसे अधिक योगदान भारी मालवाहक वाहनों का है। इसके मद््देनजर अन्य राज्यों से दिल्ली में प्रवेश करने वाले ट्रकों पर हरित-कर वसूलने का फैसला किया गया। माना जा रहा है कि इस कर की वजह से बाहरी ट्रकों का दिल्ली में प्रवेश कम हो जाएगा। पर फिलहाल इस कर की वसूली को लेकर अड़चनें पेश आ रही हैं। इसी तरह खुले में कचरा जलाने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया, मगर इस पर नजर रखने का कोई कारगर तंत्र नहीं है। ऐसे ही कई और दंडात्मक प्रावधान किए गए हैं।

पर हकीकत यही है कि इन नियम-कायदों का कोई खास असर नजर नहीं आता। दो साल पहले प्रस्ताव रखा गया था कि डीजल से चलने वाले निजी वाहनों पर अतिरिक्त कर लगाया जाए। इससे डीजल पर सबसिडी का बोझ घटने और वायु प्रदूषण पर काबू पाने का दावा किया गया था। मगर अब तक इस पर अमल नहीं हो पाया है। फिर एक बड़ी समस्या सड़कों पर निजी कारों की लगातार बढ़ती तादाद है। उसे नियंत्रित करने का कोई उपाय अभी तक नहीं सोचा जा सका है। कई देशों ने अपने यहां कारों के निर्माण और बिक्री आदि पर नियमन के कायदे-कानून बनाए हैं। भारत में इसकी पहल क्यों नहीं हो सकती? निजी वाहनों की खरीद और उपयोग को सीमित करने के लिए जरूरी है कि सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को चुस्त बनाया जाए। प्रदूषण रोकने के लिए जरूरी है कि धूल और धुएं के स्रोतों पर काबू पाने का प्रयास हो।

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