बांग्लादेश में हुए ताजा चुनावों के दौरान कम मतदाताओं और विपक्षी दलों की लगभग अनुपस्थिति को देखते हुए नतीजे बिल्कुल आकलन और उम्मीद के मुताबिक आए। इसमें अवामी लीग पार्टी को भारी जीत मिली और एक बार फिर शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश में नई सरकार का गठन होना तय है।
यानी कहा जा सकता है कि चुनावों से पहले ही उपजी अलग-अलग परिस्थितियों के बीच शेख हसीना और उनकी पार्टी के लिए एक तरह से अनुकूल स्थिति थी और उनके सामने राजनीतिक चुनौती न के बराबर थी। मगर अब देखने की बात होगी कि खाली मैदान में हासिल चुनावी जीत के बाद बनने वाली सरकार और शासन-तंत्र में लोकतंत्र कितना सुरक्षित रह पाएगा।
गौरतलब है कि रविवार को हुए चुनावों में शुरू में बहुत कम यानी 27.15 फीसद मतदान हुआ, मगर बाद में यह आंकड़ा चालीस फीसद तक पहुंच गया, जिस पर सवाल भी उठे। इसके बावजूद कहा जा सकता है कि वहां विपक्षी दलों के चुनावी बहिष्कार के आह्वान का खासा प्रभाव पड़ा।
यह बेवजह नहीं है कि चुनाव के मैदान में लगभग एकतरफा लड़ाई और जीत के बाद सबसे ज्यादा इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही है कि वहां लोकतंत्र का भविष्य क्या रहेगा। दरअसल, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के साथ-साथ पंद्रह अन्य राजनीतिक दलों ने चुनाव का बहिष्कार किया था।
इस बीच चुनावों से पहले ही शेख हसीना सरकार ने बड़ी संख्या में कई प्रतिद्वंद्वी नेताओं और उनके समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया था, जिसकी तीखी निंदा हुई थी। ऐसी स्थिति में हुए चुनावों में अगर अवामी लीग पार्टी को तीन सौ सीटों वाली संसद में दो सौ तेईस सीटें मिलीं, तो इसे अनुकूल बिसात पर मिली जीत कहा जा सकता है।
नतीजों के बाद संसद में मुख्य विपक्षी दल जातीय पार्टी को ग्यारह और बांग्लादेश कल्याण पार्टी को एक सीट पर जीत मिली, जबकि बासठ निर्दलीय उम्मीदवारों को विजय मिली। नई संसद में अब सत्ताधारी दल को संख्या के मुताबिक जो हैसियत मिलेगी, उसमें संसद में होने वाली बहसों से लेकर नीतिगत निर्णयों के मामले में विपक्ष की आवाज को कितनी जगह मिलेगी, यह समझना मुश्किल नहीं है।
इस लिहाज से, बांग्लादेश में अगर इस बात की आशंका जताई जा रही है कि अवामी लीग की जीत के बाद वहां एक पार्टी के शासन वाली व्यवस्था स्थापित हो सकती है, तो यह बेवजह नहीं है। यों किसी भी शासन में अगर विपक्ष और उसके नेताओं के सवालों के लिए जगह सिमटती है, तो इससे वहां लोकतंत्र का हनन होता है।
हालांकि देश की आर्थिक स्थिति में सुधार के मामलों में शेख हसीना के हिस्से कुछ कामयाबियां जरूर दर्ज हैं। बीते एक दशक के दौरान आर्थिक मोर्चे पर सुधार की बदौलत बांग्लादेश में प्रतिव्यक्ति आय में करीब तीन गुना बढ़ोतरी हुई और काफी तादाद में लोग गरीबी से बाहर निकले। मगर फिलहाल महंगाई से लेकर कर्ज तक के मामले में देश की तस्वीर काफी बिगड़ी है।
जाहिर है, अवामी लीग पार्टी और उसकी नेता शेख हसीना बांग्लादेश में लोकतंत्र को लेकर जताई जाने वाली आशंका को निराधार साबित करना चाहती हैं, तो उन्हें राजनीतिक-आर्थिक से लेकर जनहित के मोर्चों पर एक साथ काम करने होंगे। बांग्लादेश की सरकार को भारत का साथ मिलता रहा है, मगर इसका भविष्य शायद इस बात पर निर्भर करेगा कि वहां की सरकार देश में लोकतंत्र सुनिश्चित करने को लेकर कितनी गंभीर रहती है।