हैदराबाद के पास एक निजी स्कूल की लिफ्ट में फंस कर बच्ची की मौत की खबर दहला देने वाली है। इस घटना में सामने आए तमाम ब्योरे स्कूल प्रशासन की लापरवाही के सबूत हैं। यह हैरानी की बात है कि इतने छोटे बच्चों को बिना किसी की देखरेख के, जोखिम वाली और खराब लिफ्ट में आने-जाने के लिए छोड़ दिया जाता था। ऐसे में इस हादसे की पूरी स्थिति पहले से बनी हुई थी। गौरतलब है कि दिलसुखनगर इलाके के एक स्कूल में नर्सरी में पढ़ने वाली अपने माता-पिता की इकलौती संतान सैयदा जिनाब फातिमा कुछ बच्चों के साथ लिफ्ट में दूसरी मंजिल पर अपनी कक्षा में जा रही थी। इस बीच पुरानी तकनीक वाली लिफ्ट का भीतरी दरवाजा खुल गया, जो पहले से खराब पड़ा था। फिर चलती लिफ्ट और पहली मंजिल की छत की दीवार के बीच बच्ची का सिर फंस गया और वह बुरी तरह कुचल कर मारी गई। इसे महज अचानक हुए एक हादसे के तौर पर नहीं, बल्कि आपराधिक लापरवाही का नतीजा माना जाना चाहिए। सवाल है कि आखिर किन वजहों से इस स्कूल की शुरुआती कक्षाओं के कमरे दूसरी या तीसरी मंजिल पर चलाए जा रहे थे, जिनमें तीन-चार साल के छोटे बच्चे पढ़ते हैं?

यह दलील बेमानी है कि बच्चों को ऊपर जाने के लिए लिफ्ट की व्यवस्था की गई है। क्या इसी व्यवस्था के चलते एक मासूम बच्ची की दर्दनाक मौत नहीं हुई? वे कौन-सी वजहें हैं कि अबोध बच्चों को लिफ्ट से ऊपर-नीचे लाने-ले जाने के लिए किसी कर्मचारी को तैनात नहीं किया गया था? जबकि कायदे से ऐसी जगहों पर लिफ्टचालक की भर्ती अनिवार्य है। इसके अलावा, खराब हालत में होने के बावजूद लिफ्ट से बच्चों को आने-जाने से रोकने वाला वहां कोई भी क्यों नहीं था? इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि मौके पर पहुंचे एक दूसरे बच्चे के अभिभावक ने जब बच्ची को उस हालत में देखा और मदद की कोशिश की, तो आसपास स्कूल का कोई अधिकारी या कर्मचारी मौजूद नहीं था।

यों सरकारी स्कूलों की बदहाली के किस्से आम हैं। इनके बरक्स बहुत सारे निजी स्कूलों की यह फितरत जैसी बन चुकी है कि वे बेहतर शिक्षा और सुविधाओं के नाम पर बच्चों के अभिभावकों से अनाप-शनाप पैसे वसूलते हैं। लेकिन वास्तव में वहां बच्चों को किस तरह शिक्षा-दीक्षा और सुविधा मिल पाती है, यह किसी से छिपा नहीं है। आए दिन लापरवाही के चलते होने वाले हादसे या अप्रशिक्षित शिक्षकों के हाथों मासूम बच्चों की बेरहमी से पिटाई के मामले सामने आते रहते हैं। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई की लगातार बदहाली के बीच ऐसे निजी स्कूल हर जगह खुल गए हैं। हालांकि कोई भी स्कूल चलाने के लिए कई तरह के कानूनी मानदंड तय किए गए हैं। लेकिन कागजी तौर पर सारे मापदंड पूरा करने के वादे के बावजूद न तो स्कूल प्रबंधन को नियम-कायदों पर ईमानदारी से अमल करना जरूरी लगता है, न प्रशासन को समय-समय पर इन स्कूलों की जांच करने की जरूरत महसूस होती है। नतीजतन, निजी स्कूलों की मनमानी चलती रहती है। जब कोई त्रासद घटना सामने आती है तब संबंधित महकमों की नींद खुलती है। लेकिन इस तरह अगर हादसे में किसी बच्चे की जान चली जाती है, तो उसके लिए किसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी?