मौजूदा संसद सत्र के दौरान बुधवार दोपहर को लोकसभा में जो हुआ, उससे यही पता चलता है कि देश की राजधानी में सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली इमारत की सुरक्षा व्यवस्था भी घोषित दावे के आईने में किस हालत में है। गौरतलब है कि संसद में लोकसभा के भीतर चलती सदन में दर्शक दीर्घा से दो युवक ऊपर से कूदे और उन्होंने ‘स्मोग स्प्रे’ के जरिए धुआं फैला दिया।
जाहिर है, उनके पास ऐसी चीजें थीं, जिन्हें संसद के भीतर ले जाना प्रतिबंधित है। सवाल है कि संसद परिसर में किसी बाहरी व्यक्ति के दाखिल होने को लेकर बहुस्तरीय और कई परतों में किए गए सुरक्षा जांच इंतजामों के बावजूद ऐसा कैसे संभव हुआ! लोकसभा के भीतर पहुंचे दो लोगों ने जो किया, अब पकड़े जाने के बाद अब उनके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया चलेगी।
मगर इससे यही पता चलता है कि युवकों के अपने मकसद को अंजाम देने की जिम्मेदारी उसके भीतर जाने की इजाजत मिलने की प्रक्रिया में शामिल लोगों के अलावा संसद की सुरक्षा व्यवस्था को सुनिश्चित करने वाली इकाई की भी है, जिसमें लापरवाही बरती गई। संसद के बाहर भी एक महिला सहित दो लोगों को इसी तरह की हरकत करते और नारे लगाते पकड़ा गया। इस समूचे मामले में छह लोगों को शामिल बताया गया है।
संसद में हुई इस घटना को महज इसलिए कम करके नहीं आंका जा सकता कि उसमें कोई बड़ी अनहोनी नहीं हुई और चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। दरअसल, यह संसद की सुरक्षा-व्यवस्था में भारी चूक का मामला है और इस मसले पर गंभीर चिंता होनी चाहिए। संसद में जनप्रतिनिधियों के बैठने की जगह पर पहुंचे आरोपियों ने एक तरह से ‘सीमित हमले’ को अंजाम दिया।
कल्पना की जा सकती है कि अगर उनके पास कोई और घातक वस्तु होती तो क्या हो सकता था! सामान्य दिनों में भी संसद परिसर में प्रवेश को लेकर कई सख्त पैमाने तय हैं। संसद का अपना एक मजबूत सुरक्षा तंत्र है और भीतर जाने वाले हर बाहरी व्यक्ति को सांसद या अधिकृत अफसर की सिफारिश से पास बनवाना पड़ता है और उनके सभी सामान की बेहद बारीकी से जांच की जाती है।
नई संसद को खासतौर पर पूरी तरह आधुनिक और डिजिटल तकनीकों से लैस किया गया है और आंतरिक व्यवस्था को मजबूत किया गया है। मगर इतने व्यापक इंतजाम के बावजूद अगर कुछ लोग सदन में जाकर मनमर्जी करने में कामयाब हो जाते हैं तो इसकी जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है कि सुरक्षा व्यवस्था में किस स्तर पर चूक हुई।
विडंबना यह है कि यह घटना ठीक उसी तारीख को हुई, जिस दिन बाईस वर्ष पहले 13 दिसंबर, 2001 को कुछ आतंकवादियों ने पुराने संसद भवन पर हमला किया था, जिसमें कुल चौदह लोगों की जान चली गई थी। वह घटना इतिहास में दर्ज है और तब भी संसद की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता जताई गई थी।
उस तरह की किसी भी घटना का सबसे बड़ा और प्राथमिक सबक यह होना चाहिए था कि कम से कम उसके बाद हर स्तर पर ऐसी तमाम व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, ताकि भविष्य में उस तरह का दूसरा मामला किसी भी हाल में संभव न हो सके। जब नई संसद बनी तब इसके बारे में यह भी दावा किया गया कि यह सुरक्षा व्यवस्था की कई दीवारों से लैस है और इसमें कोई आपराधिक वारदात संभव नहीं है।
मगर दो लोगों ने बाकायदा लोकसभा में जाकर इस दावे को एक तरह से आईना दिखाया है। जरूरत इस बात की है कि कम से कम अब मौजूदा सुरक्षा तंत्र की व्यापक समीक्षा हो और उसे सौ फीसद अभेद्य बनाया जाए।