दिल्ली के जंगपुरा इलाके में एक मुद्दे पर राय जाहिर करने और उस पर एक आरडब्लूए की प्रतिक्रिया यही बताती है कि कुछ लोग देश की विविधता में एकता के विचार को या तो बेमानी मानते हैं या फिर बहुत कमजोर करके आंकते हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस के एक नेता की बेटी ने अपने सोशल मीडिया खाते पर अयोध्या और राम मंदिर से संबंधित एक टिप्पणी की और इस पर उस क्षेत्र के एक आवास कल्याण समिति यानी आरडब्लूए की ओर से उन्हें बाकायदा नोटिस भेज दिया गया।
हैरानी की बात यह है कि किसी मुद्दे पर अलग विचार अभिव्यक्त करने के बाद संबंधित आरडब्लूए की ओर से पिता-पुत्री को किसी अन्य कालोनी में चले जाने का भी सुझाव दे दिया गया। अव्वल तो भारत इतने व्यापक दायरे में भिन्न-भिन्न संस्कृतियों वाला देश है कि किसी एक मसले पर यहां अलग-अलग राय एक स्वाभाविक बात है और संवैधानिक रूप से भी किसी को अपना विचार अभिव्यक्ति करने की आजादी हासिल है। फिर अगर किसी व्यक्ति के स्वतंत्र विचार से किसी को असहमति है भी तो उसके लिए उसे इलाके से चले जाने का सुझाव देने का क्या औचित्य है?
किसी भी मुहल्ले या कालोनी में रहने वालों के बीच एकरूपता नहीं होती है। उसमें अलग-अलग सामाजिक-धार्मिक पृष्ठभूमि और विचारों के लोग हो सकते हैं। एक परिवार के सदस्यों के बीच भी असहमतियां होती हैं। आवास कल्याण समिति जैसे समूह को विचारों की भिन्नता के बीच सामंजस्य और सद्भाव कायम रखने की कोशिश करनी चाहिए, न कि किसी से असहमति होने पर वह उसे घर छोड़ कर चले जाने की सलाह दे।
भारत में लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी रही हैं, इसका आकलन इसी से कर सकते हैं कि अतीत से लेकर वर्तमान तक अमूमन हर दौर में अलग-अलग विचारों को एक साथ फलने-फूलने और अभिव्यक्ति का मौका मिला और इसके समांतर ‘अनेकता में एकता’ का तत्त्व हमेशा ही देश की खासियत रही। यह विशेषता हमारी एक ताकत रही है। मगर विडंबना यह है कि लोकतंत्र के इस जीवन-तत्त्व को कई स्तरों पर नजरअंदाज करने और उसे बाधित करने की कोशिशें भी हो रही हैं, जिसका देश की लोकतांत्रिक छवि पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।