वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी की प्रणाली अमल में आने के बाद कारोबार जगत में नियमन का एक तंत्र लागू हुआ है और इसके बाद सरकार के राजस्व के दायरे में भी विस्तार हुआ है। लेकिन अब भी ऐसे क्षेत्र में हैं, जिनमें कर के अलग-अलग स्तर का नियम लागू होने को लेकर अस्पष्टता रही है और उस पर कई हलकों से बोझ घटाने की मांग भी हुई है।
हालांकि केंद्र सरकार ने आम लोगों के हित को देखते हुए आवश्यक वस्तुओं से संबंधित कारोबार में कर निर्धारण के मामले में कई स्तरों पर रियायत बरती है, लेकिन किसी व्यवसाय की प्रकृति को देखते हुए उसमें टैक्स के अनुपात को ऊंचा भी रखा गया है। गौरतलब है कि मंगलवार को जीएसटी परिषद की पचासवीं बैठक में यह फैसला लिया गया कि अब घुड़दौड़, जुआघरों और आनलाइन गेमिंग में अट्ठाईस फीसद की दर से जीएसटी का भुगतान करना पड़ेगा।
यह कर किसी भी प्रतिभागी की ओर से लगाए जाने वाले दांव की पूरी रकम पर लगेगा। हालांकि गोवा की ओर से आनलाइन गेमिंग के मंच फीस को कम करके अठारह फीसद जीएसटी लगाने की मांग की गई थी, लेकिन इस सिफारिश पर अन्य पक्ष सहमत नहीं हुए। यों बैठक में इस मसले पर आमतौर पर सभी के बीच सहमति बनी कि कौशल और मौके के खेल के बीच अंतर नहीं किया जाना चाहिए।
दरअसल, घुड़दौड़, जुआघरों और आनलाइन गेमिंग अब संगठित रूप से भी संचालित किए जा रहे हैं। लेकिन इसका एक पहलू यह भी है कि इसे विलासिता संबंधी आवश्यकता के दायरे में रख कर देखा जाता है। शायद यही वजह है कि इसमें लगाई गई दांव की राशि पर कर का स्तर ऊंचा रखने की जरूरत महसूस हुई।
मगर इसके साथ यह सवाल भी है कि अगर सरकार एक ओर जुए, सट्टेबाजी और आनलाइन खेलों को लेकर सख्त रुख अख्तियार करती है, तो इसमें दांव की राशि पर टैक्स की दर तय करने से क्या परोक्ष रूप से इसे स्वीकृति देने का भाव नहीं पैदा होता है! गौरतलब है कि करीब तीन महीने पहले सरकार ने जुए, सट्टेबाजी और आनलाइन गेम खेलने के विज्ञापनों के खिलाफ एक परामर्शी चेतावनी जारी की थी, जिसमें सट्टेबाजी से जुड़े मंचों को बढ़ावा न देने की सलाह दी गई।
इसमें एक ऐसा ढांचा खड़ा करने की भी बात कही गई थी कि अगर किसी आनलाइन खेल को अनुमति दी जाती है तो यह ध्यान रखा जाएगा कि उसमें किसी भी तरह से दांव या बाजी लगाने की प्रवृत्ति शामिल नहीं है।
संभव है कि जिस कोण से जुआघर, घुड़दौड़ और आनलाइन गेम में दांव की राशि में जीएसटी तय करने की बात की गई है, उसका आधार यह हो कि सरकार की ओर से जिन कसौटियों पर इन खेलों को स्वीकृति दी गई है, उनके मामले में नया नियम लागू होगा। लेकिन अगर मौके के किसी खेल में सट्टेबाजी का चलन है या फिर कोई दांव लगाया जाता है तो कौशल आधारित खेलों के समांतर उनकी प्रकृति में कैसे फर्क किया जा सकता है!
दरअसल, जुआ, सट्टेबाजी और आनलाइन गेम का दायरा इतना बड़ा हो चुका है कि उसे लेकर सरकार को विस्तृत और स्पष्टता पर आधारित नियम बनाने की जरूरत है। कर निर्धारण से ऐसा संदेश नहीं जाना चाहिए कि अगर सरकार किसी काम को प्रतिबंधित करती है तो उसे लेकर वह स्पष्ट है कि इसमें संलिप्त लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी।
किसी कारोबार में नियमन को ठोस स्वरूप देना जरूरी है, लेकिन उससे अगर गलत तरीके से भ्रम पैदा होता है और उसका फायदा गैरकानूनी तरीके से अपना धंधा चलाने वाले उठाते हैं तो ऐसे मामले में एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए।