जनप्रतिनिधियों के लिए अलग से विकास निधि की व्यवस्था इस मकसद से की गई थी कि कुछ बुनियादी काम घोषित परियोजनाओं से अलग भी संपन्न कराए जा सकें। चूंकि सांसद, विधायक और पार्षद लगातार लोगों के संपर्क में रहते हैं और वे अपने मुहल्ले, इलाके की बुनियादी समस्याएं उन्हें बताते रहते हैं। ऐसी समस्याओं को परियोजनाएं बना कर निपटाने में काफी वक्त लग सकता है, क्योंकि उनकी एक प्रक्रिया होती है।

विधायकों और सांसदों के लिए अलग से निधि की व्यवस्था करने से इसका लाभ भी नजर आया। मुहल्लों की टूटी सड़कों, नालियों, पुलिया, पार्कों में व्यायाम-विश्राम के लिए कुछ बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने आदि में आसानी हो गई। इन कार्यों से लोगों में उत्साह के मद्देनजर और वक्त की बदलती जरूरतों के मुताबिक समय-समय पर सांसद और विधायक निधि में बढ़ोतरी भी की जाती है।

अभी दिल्ली सरकार ने विधायक निधि की रकम चार करोड़ से बढ़ा कर सात करोड़ रुपए करने का फैसला किया है। माना जा रहा है कि इससे विधायक अपने क्षेत्रों में विकास कार्यों का विस्तार कर सकेंगे। इस वित्तवर्ष में बढ़ी हुई राशि के केवल करीब आधे हिस्से यानी सौ करोड़ का आबंटन किया जाएगा। बाकी एक सौ बीस करोड़ रुपए अगले वित्तवर्ष में आबंटित किए जाएंगे।

निश्चय ही विधायक निधि बढ़ने से दिल्ली में कुछ बेहतर कामकाज की उम्मीद जगी है। मगर जबसे जन प्रतिनिधियों के लिए विकास निधि के आबंटन की व्यवस्था की गई, तभी से इसमें अनियमितताओं की शिकायतें भी मिलती रही हैं। सांसद, विधायक और पार्षद भी किन्हीं ठेकेदारों, एजंसियों, स्वयंसेवी संगठनों आदि की मदद से अपने इलाकों की समस्याओं, शिकायतों को दूर करने का प्रयास करते हैं।

सब जानते हैं कि उनमें कमीशनखोरी चलती है। कई मामलों में अपने करीबी लोगों को उपकृत करने की कोशिशें भी देखी जा चुकी हैं। इसलिए लंबे समय से इस निधि के उपयोग में पारदर्शिता लाने की मांग की जाती रही है। आम आदमी पार्टी अपने कामकाज में ईमानदारी और पारदर्शिता का दावा करते नहीं थकती। मगर विधायक निधि के उपयोग में वह इस पैमाने पर कितनी खरी उतरती है, देखने की बात है।

जनप्रतिनिधि अपने हिस्से की निधि का इस्तेमाल अक्सर अपना राजनीतिक जनाधार मजबूत करने के मकसद से भी करते देखे जाते हैं। वे अपने किए कामों पर अपने नाम की पट्टी चिपकाने और उनका ढिंढोरा पीटने से परहेज नहीं करते। आम आदमी पार्टी के विधायक भी इससे अलग नहीं माने जा सकते। कई मौकों पर देखा जा चुका है कि पार्कों में व्यायाम के लिए उपकरण लगाने का श्रेय लूटने को लेकर स्थानीय विधायक और सांसद में रस्साकशी हुई।

पिछले कुछ समय से दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच तनातनी के चलते अनेक कामों में बाधा आ रही है। ऐसे में सरकार के लिए यह एक सही रास्ता नजर आया होगा कि विधायक निधि में बढ़ोतरी करके लोगों में अधिक से अधिक काम के जरिए अपनी साख मजबूत की जा सकती है। मगर इसके लिए इरादे नेक होने बहुत जरूरी हैं। पहले ही उसकी कई योजनाएं अनियमितता के आरोपों से घिरी हुई हैं।

विज्ञापनों पर बेतहाशा खर्च और छात्रवृत्ति जैसी कुछ लोकलुभावन योजनाओं पर प्रश्नचिह्न लगे हुए हैं। नगर निगम के कर्मचारियों और तदर्थ कर्मियों के वेतन, पारिश्रमिक आदि के भुगतान में देरी को लेकर विवाद खड़े होते रहते हैं। ऐसे में विधायक निधि के तौर पर अतिरिक्त धन के प्रावधान को लेकर कुछ लोगों के सवाल बेवजह नहीं कहे जा सकते।