सैकड़ों एकड़ जमीन और ईंट-गारे से जेएनयू जैसी संस्थाएं नहीं बनतीं। जब नामवर सिंह जैसे शिक्षक आते हैं तो आधुनिक हिंदी की पूरी पट्टी ही जेएनयू बन जाती है और उन्हें पढ़ने से ज्यादा उन्हें सुनने वाले सारे लोग जेएनयू के विद्यार्थी। हर सोचने-समझने वालों के साथ संवाद के पक्षधर नामवर सिंह मंगलवार की रात 92 वर्ष की आयु में हमेशा के लिए मौन हो गए। वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे। बुधवार शाम को लोदी रोड स्थित श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ।
आज भी हम बहुत-सी बातों में कबीर का कहा बोलते हैं। कबीराई के ज्ञान का ऐसा भरोसा बना कि कबीर ने बोला था तो अच्छा ही बोला होगा। आधुनिक हिंदी में वही कबीर वाला भरोसा नामवर सिंह को लेकर खड़ा होता है। अंग्रेजीदां जेनएयू में पारंपरिक धोती-कुर्ता पहनने वाले नामवर ने हिंदी आलोचना को आधुनिकता का लिबास पहनाया। रामचंद्र शुक्ल और हजारी प्रसाद द्विवेदी के बाद हिंदी साहित्य में नामवर युग ही आया। साहित्य कुछ शब्दों के सृजन से तैयार नहीं होता। साहित्य के लिए अहम होते हैं समाज और संस्थाएं। एक अकादमिक के रूप में नामवर जहां भी गए संस्थान को मजबूती दी, बुनियाद रखी और उसकी अट्टालिकाओं का निर्माण किया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय, जोधपुर विश्वविद्यालय और सागर विश्वविद्यालय से लेकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग पर नामवर की छाप दिखती है। महात्मा गांधी अंतरराष्टÑीय हिंदी विश्वविद्यालय जैसे नए संस्थान खोलने में भी नामवर सिंह की अहम भूमिका रही। हिंदी में क्या, कैसे और क्यों पढ़ाया जाए – इस पर बहस चलाई और विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों को नया पाठ्यक्रम भी दिया।
हिंदी आलोचना की दुनिया की बात करें तो नामवर सिंह जैसे विद्वान अलहदा हैं जो साहित्य की परंपरा में संस्कृत से लेकर अपभ्रंश, फारसी, भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं का ज्ञान रखते हैं। उनके शोध का बहुत बड़ा क्षेत्र अपभ्रंश ही रहा है। आलोचना की शुरुआत भी अपभ्रंश से की। अपनी सबसे चर्चित पुस्तक ‘दूसरी परंपरा की खोज’ में आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हजारी प्रसाद द्विवेदी की परंपराओं को तलाशते हैं। इसके साथ ही वे वर्तमान साहित्य के साथ भी तार्किक संवाद कर रहे थे। छायावाद से लेकर नई कविता और नई कहानी को समझने के आलोचना के नए औजार गढ़ रहे थे।
आलोचना की पुस्तकों के अलावा उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में भरपूर लेखन किया। आज की पीढ़ी के बीच उनके भाषण की अनगिन स्मृतियां हैं। जिसने भी खुद को विद्यार्थी मान उनका भाषण सुना, उनसे सवाल पूछना और उसका जवाब हासिल करना भी सीख गया। वे चलता-फिरता विश्वविद्यालय थे। नामवर सिंह ने कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें असफल रहे थे। उनका राजनीतिक पक्ष उनकी सबसे बड़ी मजबूती रहा तो बाद में उतना ही विवादास्पद भी। इन सबमें सबसे अहम है उनका संवाद का पक्षधर होना।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामवर सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए अपने ट्वीट में कहा, ‘हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष नामवर सिंह जी के निधन से गहरा दुख हुआ है। उन्होंने आलोचना के माध्यम से हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। दूसरी परंपरा की खोज करने वाले नामवर जी का जाना साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है’। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया, ‘प्रख्यात साहित्यकार एवं समालोचक डॉक्टर नामवर सिंह के निधन से हिंदी भाषा ने अपना एक बहुत बड़ा साधक और सेवक खो दिया है। वे आलोचना की दृष्टि ही नहीं रखते थे बल्कि काव्य की दृष्टि के भी विस्तार में उनका बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने हिंदी साहित्य के नए प्रतिमान तय किए और नए मुहावरे गढ़े’।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘हिंदी साहित्य में आलोचना को एक नया आयाम और नई ऊंचाई देने वाले नामवर सिंह जी को विनम्र श्रद्धांजलि’। माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, ‘डॉ नामवर सिंह का साहित्य की दुनिया में बहुत विशेष स्थान था। उनका काम और उनका योगदान, उनके जाने के बाद भी कई पीढ़ियों को प्रभावित करेगा। उन्हें श्रद्धांजलि’।
साहित्यकार उद्भ्रांत ने कहा कि नामवर सिंह शीर्षस्थ इतिहास पुरुष हैं, उनके जाने से हिंदी आलोचना का युग खत्म हो गया, वैसा आलोचक अब कभी नहीं आएगा। जनवादी लेखक संघ के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘साहित्यिक सक्रियता के अत्यंत सीमित हो जाने के बावजूद वे हिंदी में अनिवार्य उपस्थिति की तरह थे’।

