साक्षरता केवल किताबी शिक्षा हासिल करने तक सीमित नहीं होती। यह मनुष्य के भीतर जीवन मूल्यों की स्थापना के साथ-साथ उन्हें सजग और जागरूक भी बनाती है। इस लिहाज से देखें, तो शिक्षा का फलक बहुत बड़ा है। हिमाचल प्रदेश ने इस दिशा में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। वह पूर्ण साक्षर राज्य बन गया है और इसके पीछे उसकी लंबी यात्रा रही है। इस राज्य के पूर्ण साक्षर बनने की राह में कई चुनौतियां रहीं, लेकिन यह यात्रा निरंतर जारी रही।

राज्य में बच्चों की संख्या की लिहाज से पर्याप्त विद्यालय खोले गए। शिक्षक-छात्र अनुपात को दुरुस्त किया गया। कई सुधारों के बाद अब इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। आज हिमाचल प्रदेश में विद्यार्थियों के स्कूल छोड़ने की दर लगभग शून्य हो गई है।

सीएम सुखविंदर सिंह हाल ही में इस उपलब्धि का ऐलान किया था

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हाल में एक कार्यक्रम के दौरान हिमाचल को पूरी तरह साक्षर घोषित करते हुए कहा कि राज्य ने 99.3 फीसद साक्षरता दर हासिल कर ली है। यह राष्ट्रीय मानक 95 फीसद से अधिक है। निस्संदेह यह राज्य के लिए बड़ी कामयाबी है और यहां के नागरिकों के लिए गर्व का विषय है।

हिमाचल प्रदेश से पहले मिजोरम, गोवा और त्रिपुरा भी पूर्ण साक्षर राज्य का दर्जा हासिल कर चुके हैं। केरल दो दशक पहले ही पूर्ण साक्षर राज्य बन गया था। अब तो उसे पूर्ण डिजिटल साक्षर राज्य भी घोषित कर दिया गया है। देश के कुछ अन्य राज्य भी पूर्ण साक्षरता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।

हिमाचल की इस उपलब्धि को अब व्यापक दायरे में देखने का समय है। इसमें दोराय नहीं कि राज्य का यह कीर्तिमान सरकार के सतत प्रयासों का परिणाम है, लेकिन प्रदेश के उन जागरूक नागरिकों की भूमिका भी कम नहीं है, जिन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने में जरा भी कोताही नहीं बरती। मगर इस चमकती तस्वीर के साथ बेरोजगारी की छाया भी नजर आती है। राज्य में साक्षरता बढ़ने के साथ सरकार को शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के व्यापक अवसर भी सृजित करने होंगे। यानी साक्षरता में अव्वल आने के साथ राज्य की जिम्मेदारी अब और बढ़ गई है।