इस वर्ष की बारिश ने एक नई चिंता खड़ी कर दी है, खासकर हिमाचल प्रदेश के लिए यह बेहद त्रासद साबित हो रही है। हालांकि कुछ दिन पहले बारिश का जोर कम हुआ था और लगा था कि अब वहां के लोग तबाही से उबरने की कोशिश करेंगे, मगर रविवार को फिर भारी बरसात और बादल फटने से राज्य के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई है।
बीते दो दिनों में राज्य के अलग-अलग हिस्सों में बारिश के चलते भारी जानमाल की क्षति हुई है। करीब पचास लोगों की मौत की खबरें हैं। अनेक जगहों पर भू-स्खलन की वजह से कई घर तबाह हो गए और उनमें बहुत सारे लोगों के दबे होने की आशंका है। शिमला के समरहिल इलाके में हुए भूस्खलन की चपेट में एक मंदिर आ गया, जिसमें उस समय काफी लोग जमा थे।
कइयों की जान चली गई और कई मलबे में दब गए। इसी तरह, मंडी और सोलन में बादल फटने और कई अन्य इलाकों में भूस्खलन की वजह से घर ढह जाने से भी भारी तबाही हुई है। जाहिर है, मृतकों की संख्या अभी और बढ़ सकती है।
निश्चित रूप से हिमाचल प्रदेश एक व्यापक आपदा से जूझ रहा है और देश भर में इसे लेकर चिंता पैदा हो रही है। इसी मौसम के पहले दौर की बरसात में भी हिमाचल प्रदेश में व्यापक तबाही हुई। काफी संख्या में लोगों की जान जाने से लेकर कई हजार करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन है। यों यह मौसम हर वर्ष ही पहाड़ी राज्यों के लिए बेहद संवेदनशील और खतरनाक साबित होता रहा है और लोग आमतौर पर इसका सामना करने के लिए तैयार रहते हैं। मगर इस बार तबाही अन्य वर्षों के मुकाबले ज्यादा हुई है।
इस वर्ष अचानक सामान्य से बहुत ज्यादा बारिश होने और बादल फटने की अपेक्षया ज्यादा घटनाओं की वजह से नुकसान भी अधिक हुआ है। ऐसी आपदा का सामना करने के अभ्यस्त रहे हिमाचल के लोगों को भी इतने व्यापक स्तर पर होने वाले नुकसान की आशंका नहीं थी। विडंबना यह है कि पूर्व अनुभवों के आधार पर बचाव के इंतजाम इस बार नाकाफी साबित हुए।
दरअसल, मौसम की अपनी गति होती है और उसमें होने वाले तेज बदलाव को लेकर कोई निश्चित अनुमान नहीं लगाया जा सकता। बरसात को लेकर चेतावनी तो दी जाती रही है, लेकिन उसकी तीव्रता कब बहुत ज्यादा हो जाएगी, यह मौसम के रुख पर निर्भर करता है। आमतौर पर बरसात तबाही की वजह तभी बनती है, जब पानी के निकलने का रास्ता बाधित होता है।
पहाड़ तब खतरनाक होते हैं, जब उनकी जड़ों के साथ गैरजरूरी छेड़छाड़ होती है। यह छिपा नहीं है कि पिछले कुछ दशकों से पहाड़ी राज्यों में एक ओर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए होटल या अन्य निर्माण कार्य व्यापक पैमाने पर हुए हैं और इस क्रम में पहाड़ी नदियों के प्रवाह या उनके सहज रास्तों को लेकर बेहद लापरवाही बरती गई।
दूसरी ओर, आवाजाही को सुगम बनाने के नाम पर पहाड़ों को काट कर सड़कों को चौड़ा करने की योजनाओं ने भूस्खलन के खतरों को कई गुना बढ़ा दिया है। सवाल है कि ऐसी योजनाएं बनाते समय ही आकलन क्यों नहीं किया जाता कि इस सबका अंजाम क्या होगा? आपदा के बाद तबाही का सामना करना ही आखिरी विकल्प बच जाता है। प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता है, लेकिन उससे बचाव के इंतजाम करने और नुकसानों को कम करने की कोशिश की जा सकती है।