पिछले कुछ समय से साइबर अपराधियों का संजाल जिस तरह लगातार बढ़ता देखा जा रहा है, उसमें डिजिटल हो रही व्यवस्था के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। इससे निपटने के लिए सरकार और जांच एजंसियों के मौजूदा सुरक्षात्मक उपाय बौने साबित हो रहे हैं। साइबर अपराधी ठगी की घटनाओं को अंजाम देने के लिए नए-नए तरीके इजाद कर रहे हैं। ‘डिजिटल अरेस्ट’ भी इनमें से एक है, जिसके जरिए बड़े पैमाने पर लोगों को धोखाधड़ी का शिकार बनाया जा रहा है।

इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार और केंद्रीय जांच जांच ब्यूरो (सीबीआइ) ने ऐसे मामलों में अब तक तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक की उगाही किए जाने का अनुमान जताया है। यही कारण है कि अब सर्वोच्च अदालत ने इस तरह के मामलों से सख्ती से निपटने की जरूरत पर बल दिया है। साथ ही कहा कि अगर अदालत से कड़े आदेश पारित नहीं किए गए, तो यह समस्या और भी गंभीर हो सकती है।

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गौरतलब है कि देश में साइबर अपराधों के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी का आकलन राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो की हाल की एक रपट से किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2022 में देश भर में साइबर अपराध के 65,983 मामले दर्ज किए गए, जिनकी संख्या 2023 में इकतीस फीसद बढ़कर 86,420 हो गई। साइबर ठगी के ऐसे मामले भी सामने आते रहे हैं, जिनमें पीड़ित लोगों से करोड़ों रुपए ऐंठ लिए गए। ऐसे ही एक मामले में पिछले दिनों हरियाणा के अंबाला की एक बुजुर्ग महिला ने प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा कि उन्हें और उनके पति को ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर अपराधियों ने उनसे एक करोड़ रुपए से अधिक की रकम हड़प ली।

इसके बाद शीर्ष अदालत ने ऐसे मामलों को लेकर सख्त रुख अपनाया है। सर्वोच्च न्यायालय के इस दखल से उम्मीद है कि सरकार और जांच एजंसियों की ओर से साइबर ठगों पर नकेल कसने के लिए जल्द ठोस एवं कारगर कदम उठाए जाएंगे। साइबर संजाल की दुनिया में जिस रफ्तार से जोखिम पैदा हो रहे हैं, उसमें व्यापक पैमाने पर डिजिटलीकरण के असुरक्षित होने को लेकर भी गंभीर सवाल उठने लगे हैं।