भारत के प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर त्योहारों और छुट्टियों के दौरान या किसी विशेष आयोजनों के समय डिब्बों से लेकर प्लेटफार्म तक यात्रियों की भीड़ बेतहाशा बढ़ जाती है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पिछले दिनों मची भगदड़ के बाद उठे कई सवालों के बीच दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक जरूरी सवाल उठा कर रेलवे की एक सबसे बड़ी खामी की ओर इशारा किया है। आमतौर पर किसी भी रेलगाड़ी में डिब्बों के हिसाब से यात्रियों की संख्या निर्धारित होती है।

इसी तरह अनारक्षित श्रेणी के डिब्बे में भी यात्रियों की एक सीमा है। मगर यह देखा गया है कि छुट्टियों और त्योहारों के दौरान गैरआरक्षित टिकटों की बिक्री करने में किसी सीमा का ध्यान नहीं रखा जाता। ऐसी स्थिति में सीट मिलना तो दूर, सामान्य डिब्बे में घुसने तक की स्थिति न बन पाने की वजह से कई यात्री आरक्षित डिब्बे में भी सवार हो जाते हैं।

उच्च न्यायालय ने उचित सवाल किया

इससे पहले से आरक्षित श्रेणी में यात्रा करने वालों को काफी दिक्कत होती है। वहीं अनारक्षित डिब्बे में पैर रखने तक की जगह नहीं होती। कई बार यात्री दरवाजे पर लटके दिखाई देते हैं। ऐसे में स्टेशन पर मची भगदड़ के संदर्भ में उच्च न्यायालय ने उचित सवाल किया है कि डिब्बों की क्षमता से अधिक टिकट बेचे ही क्यों गए।

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यह प्रश्न स्वाभाविक ही है कि जब रेलवे को मालूम है कि स्टेशन से कितनी गाड़ियां रवाना होंगी और एक डिब्बे में अधिकतम कितनी संख्या में लोग यात्रा कर सकते हैं, तो उससे बहुत ज्यादा टिकट कैसे बेचे गए। दरअसल, रेलवे कई बार अपने ही बनाए नियमों की उपेक्षा करता है। उच्च न्यायालय ने इस प्रवृत्ति पर गंभीर सवाल उठाया है।

यात्रियों की भीड़ को संभाल नहीं पाया रेलवे

हादसे वाले दिन नई दिल्ली स्टेशन पर अधिक प्लेटफार्म टिकट जारी होने से भी स्थिति बिगड़ी थी। नई दिल्ली स्टेशन पर त्रासद हादसे के बाद कई सख्त नियम-कायदे लागू किए गए, लेकिन दूरदर्शिता के अभाव में भगदड़ और उसके नतीजे में जो हुआ, उससे स्टेशन प्रबंधकों की बदइंतजामी और घोर लापरवाही ही सामने आई। नई दिल्ली स्टेशन का जो बुनियादी ढांचा है, वह इतनी बड़ी संख्या में आए यात्रियों की भीड़ को संभाल नहीं पाया। बेहतर होगा कि जिस तरह हवाईअड्डों पर भीड़ प्रबंधन के लिए एक पुख्ता तंत्र है, रेलवे वैसी ही व्यवस्था जल्द अपनाए।