बानू मुश्ताक के कन्नड़ भाषा में लिखे गए कहानी संग्रह ‘हृदय दीप’ के अनूदित संस्करण ‘हार्ट लैंप’ को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिलने से एक बार फिर यह सिद्ध हुआ है कि भारतीय साहित्य का फलक बड़ा है। इस पुरस्कार ने लेखिका की जिंदगी और उनके साहित्य को दुनिया के सामने रखा है। दरअसल, बानू मुश्ताक ने पितृसत्तात्मक समाज में संघर्ष कर रही लाखों महिलाओं की पीड़ा को अपनी कहानियों में उकेरा है। अपनी कहानियों में दर्ज उन्हीं महिलाओं को पुरस्कार समर्पित करते हुए उन्होंने कहा भी है कि यह केवल उनकी जीत नहीं, बल्कि उन अनसुनी आवाजों का समवेत स्वर है, जिसे प्राय: दबा दिया जाता है।

वकील और सामाजिक कार्यकर्ता बानू रूढ़िवाद के खिलाफ हमेशा मुखर रही हैं। यह उनके लेखन में स्पष्ट दिखता है। वे सामाजिक मुद्दे प्रमुखता से उठाती रही हैं। उनकी कहानियों में परंपरा और लोकभाषा जीवंत हो उठती है। उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों से साहित्य रचा है। इसलिए उनमें कल्पना के साथ तीखी सच्चाई है। उनका मानना है कि आज की बंटी हुई दुनिया में साहित्य एक ऐसी पवित्र जगह है, जहां हम कुछ देर के लिए ही सही, लेकिन एक दूसरे की भावना और जीवन को महसूस कर सकते हैं। लेखिका की यह भावना दुनिया से गुम हो रही संवेदना को बचाने की कोशिश है।

जाहिर है, अब ‘हार्ट लैंप’ को बुकर पुरस्कार मिलना वैश्विक फलक पर भारतीय भाषाओं को अपनी पहचान स्थापित करने के रास्ते को और आसान बनाएगा। क्षेत्रीय भाषाओं में रचे जा रहे साहित्य को नए पाठक भी मिलेंगे। लंदन में संग्रह की अनुवादक दीपा भास्ती के साथ पुरस्कार ग्रहण करते समय बानू का यह कहना हर किसी को सुखद लगा कि कोई कहानी स्थानीय नहीं होती। उनके गांव के बरगद के पेड़ के नीचे बुनी कहानियां आज इस मंच तक को छाया दे रही हैं।

निश्चित रूप से यह कन्नड़ भाषा के लिए गौरव का क्षण है। यह पहली बार है जब इस भाषा में लिखी गई लघु कहानियों के अनूदित संग्रह को अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला है। वहीं भारतीय साहित्य में दूसरी बार किसी लेखिका को बुकर पुरस्कार मिला है। यह सम्मान बानू मुश्ताक की कड़ी मेहनत को ही नहीं, बल्कि हाशिये के समुदायों और संकीर्ण विचारों से लड़ रहीं स्त्रियों को भी मिला है।