सेहत के मोर्चे पर आज भी तस्वीर ऐसी हो कि जच्चा-बच्चा की मौतों के मामले में देश की स्थिति सबसे खराब हो तो ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि विकास के ढांचे में प्राथमिकताएं क्या हैं।

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र की एक रपट में यह जानकारी दी गई है कि जच्चा-बच्चा मौतों के मामले में जिन देशों की स्थिति बेहद नकारात्मक पाई गई है, उसमें भारत की तस्वीर सबसे खराब है। रपट के मुताबिक, भारत में प्रसव के दौरान महिलाओं, मृत शिशुओं के जन्म और नवजात शिशुओं की मौत के मामले सबसे ज्यादा हैं।

सन 2020-2021 में दुनिया के अलग-अलग देशों में तेईस लाख नवजात शिशुओं की मौत हो गई, जिनमें से भारत में मरने वालों की संख्या सात लाख अठासी हजार रही। सवाल है कि जिस दौर में सरकार स्वास्थ्य को लेकर सबसे ज्यादा संवेदनशील होने और प्राथमिकता में सबसे ऊपर मान कर काम करने का दावा कर रही है, उसमें आज भी प्रसव के दौरान महिलाओं और नवजात की मौत के मामले क्यों अधिक हैं!

दरअसल, जच्चा-बच्चा मौतों को लेकर यह दुखद तस्वीर नई नहीं है। लंबे समय से यह विडंबना एक तरह से स्थिर और कायम है कि प्रसव के दौरान महिलाओं या नवजात की जान चली जाती है। चिकित्सा सुविधाओं का दायरा फिलहाल इतना है कि उस तक बहुत सारे जरूरतमंद परिवारों की पहुंच नहीं है या फिर वहां बुनियादी सुविधाओं की कमी है।

एक बड़े तबके के बीच महिलाओं को गर्भधारण के बाद जिन पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है, कई कारणों से उससे वे वंचित होती हैं। इसका सीधा असर उनकी सेहत, शारीरिक क्षमता और प्रसव पर पड़ता है, जिसमें कई बार प्रसव के समय महिला की जान चली जाती है या फिर बच्चा इतना कमजोर पैदा होता है कि उसे बचाया नहीं जा पाता। यह स्थिति तब है जब महिलाओं की सेहत और प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर सरकारों की ओर से अनेक तरह की योजनाओं और कार्यक्रमों का संचालन होता रहा है।

गौरतलब है कि सुरक्षित प्रसव के लिए प्रसूता महिलाओं को अस्पतालों में सुविधाएं और नगदी सहायता मुहैया कराई जाती है। 2005 से लागू जननी सुरक्षा योजना की शुरुआत ही गर्भवती माताओं और नवजात की सेहत में सुधार लाने के मकसद से हुई थी। इसके तहत कई राज्यों में गर्भवती महिलाओं के खाते में छह हजार रुपए दिए जाते हैं, ताकि जच्चा-बच्चा को जरूरी पोषण मिल सके।

2011 में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार मंत्रालय ने जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम की शुरुआत की और इसके दो साल बाद इसके तहत दी जाने वाली सुविधाओं का विस्तार हुआ और उसमें जन्म के बाद नवजात के पोषण और इलाज की सहूलियत भी शामिल की गई। कायदे से अनेक योजनाओं और कार्यक्रमों के बाद जच्चा-बच्चा की मौतों के मामले में स्थिति में सुधार आना चाहिए था।

मगर आखिर ऐसा क्यों है कि तमाम प्रयासों के बावजूद प्रसव के दौरान महिलाओं, मृत शिशुओं का जन्म और नवजातों की मौत का सिलसिला आज भी कायम है? समूचे देश में स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने के दावे के दौर में यह तस्वीर एक तरह से आईना दिखाती है कि जमीनी स्तर पर हकीकत क्या है और अभी कितना कुछ किया जाना बाकी है।