दिल्ली में सम-विषम योजना के दूसरे चरण का परिणाम उत्साहजनक नहीं रहा। इससे एक बार फिर यही साबित हुआ है कि शहर में बढ़ते वायु प्रदूषण पर काबू पाना खासा कठिन काम है। जनवरी में जब वायु प्रदूषण का स्तर चिंताजनक हो गया तो बाहरी राज्यों से आने वाले ट्रकों को शहर से होकर गुजरने पर पाबंदी लगाई गई। भवन निर्माण और दूसरी परियोजनाओं से निकलने वाली गर्द रोकने के लिए कंपनियों के खिलाफ कड़े दंड का प्रावधान किया गया। सड़कों पर कारों के लिए प्रायोगिक तौर पर सम-विषम योजना लागू की गई। कारपूल पर जोर दिया गया। तब इसके कुछ बेहतर नतीजे दर्ज हुए। पर दिल्ली सरकार इस योजना को जारी रखने को लेकर आश्वस्त नहीं थी। इसलिए अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में उसने एक बार फिर इस योजना को प्रायोगिक तौर पर लागू किया।
मगर नतीजे संतोषजनक नहीं निकले, बल्कि इस बार लोगों में सहयोग के बजाय विरोध भाव अधिक देखा गया। योजना के आखिरी दिन सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा कि आखिर क्या वजह है कि सम-विषम योजना से अपेक्षित नतीजे नहीं निकल पा रहे। फिर उसने सभी टैक्सियों को सीएनजी से चलाने का आदेश दिया। कुछ साल पहले बढ़ते वायु प्रदूषण के मद्देनजर व्यावसायिक वाहनों को सीएनजी से चलाने की अनिवार्यता लागू की गई थी, तब वायु प्रदूषण के स्तर में काफी कमी दर्ज हुई। इसलिए टैक्सियों में सीएनजी की अनिवायर्ता से कुछ बेहतर नतीजे की उम्मीद बनती है।
दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण की वजहें साफ हैं। शहर पर आबादी के बढ़ते दबाव की वजह से सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को सुचारु और सुविधाजनक बनाना खासा कठिन काम हो गया है। कुछ साल पहले इसके लिए निजी कंपनियों से अपील की गई थी कि वे सुविधाजनक बसें चलाने में सहयोग करें। मगर कंपनियों ने क्लस्टर बसों के रूप में लगभग वैसी ही बसें सड़कों पर उतारीं, जैसी ब्लू लाइन बस सेवाएं उतारती हैं। हालांकि डीटीसी ने वातानुकूलित बसें चलाईं, मेट्रो सेवाओं का विस्तार हुआ, मगर उनमें लगातार भीड़भाड़ बढ़ते जाने के चलते कार से चलने वाला वर्ग उनकी तरफ आकर्षित नहीं हो सका।
बल्कि जब सम-विषम योजना लागू की गई तो इस वर्ग में सक्षम लोगों ने अतिरिक्त कारें खरीदना बेहतर विकल्प समझा। कारपूल को लेकर बहुत सारे लोग इसलिए भी उत्साहित नहीं होते कि उन्हें सिर्फ घर से दफ्तर आने-जाने के लिए नहीं, बल्कि कामकाजी जरूरतों के चलते दिन भर अनेक जगहों पर आने-जाने के लिए वाहन की जरूरत पड़ती है। फिर भी ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो महज शान के लिए अकेले अपने वाहन में सफर करते हैं। उन्हें सोचने की जरूरत है कि आखिर शहर की बिगड़ती आबोहवा का असर लोगों की सेहत बिगाड़ रही है। जिन समस्याओं पर जागरूकता से काबू पाया जा सकता है, उनके लिए कानूनी कड़ाई का इंतजार क्यों करना चाहिए।