जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पीडीपी के गठबंधन को परम राजनीतिक विरोधाभास के तौर पर देखा गया, पर दूसरी तरफ यह उम्मीद भी जताई गई कि गठबंधन की सरकार जम्मू और कश्मीर के बीच की खाई पाटने की ऐतिहासिक भूमिका निभा सकती है। दूसरी उम्मीद यह भी जगी कि राज्य सरकार को केंद्र का भरपूर अपेक्षित सहयोग मिलेगा और साथ ही केंद्र के सामने भी घाटी के लोगों का भरोसा जीतने का पहले से कहीं बेहतर मौका है। पर कुछ ही दिनों में उम्मीद के दोनों आधारों को गहरा धक्का लगा है। पहले एनआईटी का विवाद छाया रहा और अब हंदवाड़ा में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में चार व्यक्तियों की मौत के बाद पूरी घाटी में तनाव है।
एनआईटी के विवाद ने घाटी और जम्मू के बीच की मानसिक खाई को और बढ़ाया ही है। इसी तरह हंदवाड़ा की घटनाओं से केंद्र के प्रति लोगों का असंतोष कम होने के बजाय और बढ़ा है। बेशक यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है और इसकी जवाबदेही से न राज्य सरकार पल्ला झाड़ सकती है, न केंद्र यह बहाना कर सकता है कि कानून-व्यवस्था राज्य का मामला है इसलिए उसकी कोई जिम्मेवारी नहीं बनती। आखिर चारों व्यक्ति सेना की गोलीबारी में मारे गए हैं।
यह सही है कि ये मौतें उग्र भीड़ को तितर-बितर करने की कार्रवाई के दौरान हुर्इं, पर ऐसा लगता है कि जरूरत से ज्यादा बल प्रयोग किया गया। खुद उत्तरी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड््डा ने हंदवाड़ा की घटना को बहुत अफसोसनाक करार दिया है। हंदवाड़ा का दौरा करने के बाद उन्होंने मामले की जांच जल्द पूरी करने की जरूरत भी बताई। दूसरी तरफ राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को यह जरूरी लगा कि वे रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर से मिल कर गोलीबारी पर अपना विरोध जताएं। महबूबा के मुताबिक पर्रीकर ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि जांच जल्द की जाएगी और दोषियों को दंडित किया जाएगा।
घटनाक्रम की शुरुआत एक सैनिक पर एक लड़की से छेड़छाड़ के आरोप से हुई। इस कथित घटना के विरोध में बहुत-से लोग सड़कों पर उतर आए और भीड़ ने हिंसक रुख भी अख्तियार कर लिया। अब सेना ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें कथित पीड़ित लड़की ने बताया है कि जवानों ने उसके साथ छेड़छाड़ नहीं की थी, बल्कि इसकी साजिश दो स्थानीय युवकों ने रची थी। सेना का कहना है कि छेड़छाड़ का आरोप सेना की छवि खराब करने के इरादे से लगाया गया है।
पीड़ित लड़की की पहचान उजागर करने पर कई मानवाधिकार संगठनों ने सवाल उठाए हैं, पर जांच जरूर इस कोण से भी होनी चाहिए कि क्या घाटी का अमन-चैन बिगाड़ने के इरादे से कोई षड्यंत्र रचा गया था? पूरी घाटी में बंद के आयोजन और कुछ इलाकों में कर्फ्यू से जाहिर है कि वहां इस वक्त हालात बहुत नाजुक हैं। जहां कर्फ्यू जैसी पाबंदियां नहीं हैं वहां भी ज्यादातर इलाकों में दुकानें, कारोबारी प्रतिष्ठान और पेट्रोल पंप बंद रहे। ऐसे में कोई भी गलत या अपरिपक्व निर्णय अलगाववादियों को ही फायदा पहुंचाएगा।
इस समय अतिरिक्त सावधानी बरतना इसलिए भी जरूरी है कि चार दिन बाद प्रधानमंत्री को जम्मू में एक विश्वविद्यालय के समारोह को संबोधित करना है; महबूबा सरकार के गठन के बाद राज्य में यह उनका पहला दौरा होगा। हंदवाड़ा की घटना को छोड़ दें, तो हाल में घाटी का माहौल पिछले कई सालों की तुलना में बेहतर रहा है। इस उपलब्धि का क्या होगा!