नौकरशाही को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त करने की सिफारिशें लंबे समय से की जाती रही हैं। मगर इस दिशा में किसी भी सरकार ने गंभीरता से पहल नहीं की। यह परिपाटी-सी बन गई है कि जब भी सरकार बदलती और कोई दूसरा दल सत्ता की कमान संभालता है, तो बड़े पैमाने पर अधिकारियों के तबादले किए जाते हैं। हर राजनीतिक दल सत्ता संभालने के साथ ही अपने करीबी और भरोसेमंद अधिकारियों को जिम्मेदार पदों पर पदस्थ करता और उन्हें लंबे समय तक वहां बनाए रखने का प्रयास करता है।

अब संसद की एक स्थायी समिति ने कहा है कि अधिकारियों को लंबे अरसे तक एक ही जगह पदस्थ किए रखने से भ्रष्टाचार बढ़ता है। कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय विभाग से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से संबंधित चालू वर्ष की अनुदान मांगों पर अपनी रपट पेश करते हुए कहा कि अधिकारियों की बारी-बारी से स्थानांतरण की प्रचलित नीति लागू की जानी चाहिए।

अधिकारी ईमानदारी से काम करें तो एक जगह रहना बेहतर

संसदीय समिति ने अपनी जांच में पाया कि कुछ अधिकारी आठ-नौ वर्षों से एक ही मंत्रालय में जमे हुए हैं। कुछ अधिकारियों ने अपनी तैनाती में कुछ इस तरह चतुराई दिखाई है कि उनका पूरा कार्यकाल एक ही मंत्रालय में बीता है। करीब पंद्रह वर्ष पूर्व जब अधिकारियों की थोड़े-थोड़े समय पर तबादलों की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंगुलियां उठनी शुरू हुई थीं, तब प्रशासनिक आयोग ने सिफारिश की थी कि किसी भी अधिकारी का तबादला तीन वर्ष से कम समय में न किया जाए, ताकि वे एक स्थान पर रह कर कुछ बेहतर काम कर सकें।

हादसों से नहीं ली जा रही सीख, पटरी से लगातार उतर रही ट्रेन

मगर अब इसके उलट प्रवृत्ति विकसित हुई देखी जा रही है, तो यह भी चिंता का विषय है। निस्संदेह कुछ अधिकारी ईमानदारी और संजीदगी से काम करते हैं और उनका एक जगह लंबे समय तक बने रहना लाभदायक साबित होता है। मगर संसदीय समिति की इस बात को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता कि एक ही जगह लंबे समय तक बने रहने वाले अधिकारी अनियमितताओं में लिप्त हो जाते हैं। अगर बारी-बारी से अधिकारियों के तबादले की नीति रही है, तो उसका पालन करने में सरकारों को क्यों गुरेज होना चाहिए।