पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को हिरासत में लिए जाने के बाद जैसे हालात पैदा हो गए हैं, उसे संभालना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। दरअसल, अल-कादिर विश्वविद्यालय ट्रस्ट में कथित भ्रष्टाचार के मामले में मंगलवार को इमरान खान को गिरफ्तार करने के लिए वहां जो तरीका अपनाया गया, उसे अप्रत्याशित माना जा रहा है।

इमरान खुद पर दर्ज कई मामलों में से दो में जमानत हासिल करने इस्लामाबाद हाई कोर्ट गए थे, जहां अर्धसैनिक बल रेंजर्स ने उन्हें एक अन्य मामले में गिरफ्तार कर लिया और ‘नेशनल अकाउंटिबिलिटी ब्यूरो’ यानी नैब को सौंप दिया। बुधवार को अदालत ने उन्हें आठ दिनों के रिमांड पर भेज दिया। गौरतलब है कि नैब पाकिस्तान में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करती है। हालांकि पाकिस्तान में जब से इमरान खान की कुर्सी गई है, तभी से शहबाज सरकार और सेना उनके खिलाफ शिकंजा कस रही थी। पिछले साल प्रधानमंत्री पद से अपदस्थ होने के बाद से उनके खिलाफ देश भर में कुल एक सौ चालीस से ज्यादा मामले दर्ज कराए गए हैं।

अंदाजा लगाया जा सकता है कि इमरान खान को घेरने के लिए शहबाज सरकार की ओर से किस शिद्दत से कार्रवाई की गई है। उन मामलों का क्या आधार है और आखिर वे किस नतीजे पर पहुंचेंगी, यह तो वहां की अदालतों के फैसलों पर निर्भर करेगा, लेकिन कार्रवाई के स्तर पर सरकार जिस तरह की जल्दबाजी में दिख रही है, उससे उसका मकसद साफ लग रहा है।

हालांकि पाकिस्तान में शीर्ष पदों पर रह चुकी शख्सियतों को कानून के कठघरे में खड़ा किया जाना और उन्हें हाशिये पर डालना कोई नई बात नहीं है। लेकिन इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद ऐसा शायद पहली बार है कि पाकिस्तान के कई इलाकों में आम जनता व्यापक विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि लोग सेना के ठिकानों में भी घुस गए और उन्होंने हिंसक हमले किए। यह छिपा नहीं है कि पाकिस्तान में सरकार के कामकाज में सेना का किस स्तर पर दखल रहा है और उसका असर समूचे देश के शासन के ढांचे पर क्या पड़ा है।

दरअसल, सत्ता से बाहर होने के बावजूद इमरान खान ने कई मुद्दों पर जो सार्वजनिक रुख अपनाया, बड़े विरोध प्रदर्शन जारी रखे, सेना पर भी निशाना साधा, उससे एक तरह से वहां जनमत-निर्माण भी हो रहा था। इसलिए निश्चित रूप से यह वहां की मौजूदा सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती की स्थिति है, जो पहले ही आर्थिक मोर्चों पर गहराते संकट से निपट पाने में खुद को नाकाम पा रही है।

सच यह है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डूबने के कगार पर दिख रही है। वहां के लोग महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ती गरीबी से लेकर अन्य मुद्दों पर लगातार परेशान हैं और इसका आक्रोश वहां अक्सर होने वाले विरोध प्रदर्शनों में फूटता रहा है। ऐसे में इमरान खान स्वाभाविक ही एक प्रतिनिधि प्रतिपक्ष के रूप में खड़े थे और आक्रामक स्वर में चुनौती पेश कर रहे थे।

अब उनकी अचानक गिरफ्तारी और उससे जुड़े घटनाक्रम के बाद पाकिस्तान में सुरक्षा और राजनीतिक मोर्चे पर अराजकता फैलने के साथ-साथ आर्थिक हालात और ज्यादा बिगड़ने की आशंका खड़ी हो गई है। पहले ही चौतरफा चुनौतियों से घिरी सरकार के लिए एक नई मुश्किल यह है कि पाकिस्तान में मौजूदा अराजक हालात और उथल-पुथल से निपटने में उसे अतिरिक्त ऊर्जा खर्च करनी होगी। खुद इमरान खान ने अपनी जान पर खतरे को लेकर जैसी आशंका जताई है, उसे गलत साबित करना सरकार के ही हाथ में होगा।