पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत और चीन के रिश्तों में निरंतर उतार-चढ़ाव एक जगजाहिर हकीकत है। भारत ने अपनी ओर से किसी भी समस्या के हल के लिए हमेशा सकारात्मक रुख दिखाया, मगर भारत के कदमों पर चीन की प्रतिक्रिया उत्साहजनक नहीं रही। आमतौर पर चीन ने अपनी ताकत और धौंस दिखाई है। हालांकि भारत ने हर स्थिति में संयमित प्रतिक्रिया दी और सिर्फ इस वजह से दक्षिण एशिया का यह समूचा क्षेत्र फिलहाल शांत दिखता है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि भारत के पास असीमित संयम है।

समस्याओं का हल निकालने के चीन के आश्वासन के प्रति भारत के लिए पूरी तरह निश्चिंत होना मुश्किल रहा है। हालांकि संबंधों में सुधार को लेकर भारत ने हमेशा ही उत्सुकता दिखाई है, लेकिन कई बार हकीकत को लंबे समय तक नजरअंदाज करना संभव नहीं हो पाता है। शायद यही वजह है कि भारत के विदेश मंत्री ने न्यूयार्क में हुए एक कार्यक्रम में स्पष्ट तौर पर कहा कि मौजूदा समय में दोनों देशों के बीच संबंध ‘काफी बिगड़े हुए’ हैं।

लंबे समय से संबंधों को संभालने की एकतरफा कोशिश के बाद भारत की ओर से यह एक तरह से हकीकत का बयान है कि इस मामले में पिछले चार-पांच वर्षों में चीन का रवैया क्या रहा है। वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य गतिविधियों के जरिए उकसाने का मुद्दा हो या फिर अरुणाचल प्रदेश को लेकर किए गए दावों के जरिए अनुचित दखल का सवाल, चीन ने आए दिन अपनी चालबाजियों के जरिए अपना असली चेहरा दिखाया है।

शांति और सहजता कायम रखने का भरोसा

शांति और सहजता कायम रखने का भरोसा देने के कुछ ही दिन बाद उसकी ओर से कोई न कोई ऐसी हरकत की जाती है, जो किसी भी संप्रभु देश की सीमा में नाहक दखल ही है। सवाल है कि अगर भारत अपनी ओर से संयम और धैर्य का परिचय न दे तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैसे हालात पैदा हो सकते हैं! यह छिपा नहीं है कि चीन अक्सर नाहक ही सीमा पर अनुचित गतिविधियों के जरिए भारत को भड़काने की कोशिश करता रहा है, मगर भारत ने 2020 में गलवान में इसका ठोस जवाब देने के अलावा अब तक अपनी प्रतिक्रिया को नियंत्रित ही रखा है, ताकि हालात और न बिगड़े।

भारत के इस संयम को अगर चीन इसकी कमजोरी के तौर पर देखता है, तो यह उसकी भूल है। विदेश मंत्री ने भी इसे अपने वक्तव्य में रेखांकित किया है कि भारत और चीन के रिश्ते एशिया के भविष्य के लिए महत्त्वपूर्ण हैं और न केवल इस महाद्वीप को, बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित करेंगे। साथ ही, अगर दुनिया को बहु-ध्रुवीय होना है, तो एशिया को भी बहु-ध्रुवीय होना होगा। मौजूदा विश्व में कोई भी देश अपने आर्थिक-सामरिक बल के बूते एक-ध्रुवीय भू-राजनीति का केंद्र बनना चाहता है, तो यह उसकी खामखयाली साबित होगी, क्योंकि वक्त के साथ अलग-अलग देशों की बहुस्तरीय क्षमताओं में व्यापक बदलाव हुआ है।

चीन नहीं रखता अपनी गरिमा का ख्याल

विडंबना यह है कि एक शक्तिशाली देश कहे जाने के बावजूद चीन ने कभी इसके मुताबिक गरिमा का प्रदर्शन नहीं किया है। विस्तारवाद की भूख के तहत वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जैसी दखलअंदाजी की कोशिश करता रहता है, उसने भारत के साथ सीमा विवाद से लेकर अन्य समस्याओं का हल निकलने के बजाय इसको जटिल ही बनाया है। जरूरत यह है कि वैश्विक स्तर पर बदलती तस्वीर के मद्देनजर चीन विवादों का हल निकाल कर भारत के साथ संबंधों को सहज बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए।