उत्तर प्रदेश में लौटते मानसून की वजह से हुई बारिश ने जैसे हालात पैदा कर दिए हैं, उससे फिर यही पता चलता है कि वक्त के मद्देनजर पूर्व तैयारी, सावधानी और दूरदर्शिता के अभाव का खमियाजा आखिरकार आम लोगों को भुगतना पड़ता है। पिछले तीन दिनों की बारिश के चलते राज्य के कई जिलों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई और व्यापक पैमाने पर जनजीवन बाधित हुआ है।

ज्यादा दुखद यह है कि लगातार बरसात ने कई जगहों पर घरों को कमजोर कर दिया और दीवार गिरने से उन्नीस लोगों की जान चली गई। इसमें बारिश के दौरान वज्रपात की चपेट में आने से भी कई लोग मारे गए। सही है कि यह स्थिति एक प्राकृतिक आपदा के रूप में सामने आई है, लेकिन अगर वक्त और मौसम को ध्यान में रखते हुए समय रहते जरूरी कदम उठाए जाएं, तो शायद ज्यादा बड़ी तबाही से बचा जा सकता है। लखनऊ में हालत यह है कि सबसे सुव्यवस्थित कहे जाने वाले इलाकों में भी दो-तीन फुट पानी भर गया। इससे दूसरे इलाकों की मुश्किल का अंदाजा लगाया जा सकता है।

बारिश मौसम का एक चक्र है, लेकिन अगर किसी सुव्यवस्थित इलाके में भी बाढ़ और जल जमाव की वजह से सब कुछ ठहर जाए, तो क्या यह व्यवस्था की नाकामी का उदाहरण नहीं है? हर मौसम का अपना निर्धारित चक्र है, पर विडंबना है कि न तो आम लोग मौसम का रूप बिगड़ने को ध्यान में रख कर अपने स्तर पर तैयारी करते हैं और न ही सरकारें समय रहते उचित व्यवस्था करती हैं।

अगर सिर्फ इतने भर का ध्यान रखा जाए कि प्रकृति कभी भी भयावह रुख अख्तियार कर सकती है और इसके मद्देनजर बचाव और राहत के इंतजाम तैयार रहें तो जानमाल के व्यापक नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। मगर आमतौर पर यही देखा जाता है कि जब तक कोई मौसम आपदा का रूप लेकर संकट नहीं बन जाता, तब तक लोग बचने की कोशिश नहीं करते। दूसरी ओर, सरकार भी तभी राहत पहुंचाने और दूसरे कदम उठाती है, जब हालात काबू से बाहर हो जाते हैं।

उत्तर प्रदेश में इस बार लगातार भारी बारिश के बारे में मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी जड़ में बंगाल की खाड़ी में बनने वाला चक्रवात है और अगले कुछ दिन और ऐसी ही स्थिति कायम रहने वाली है। ऐसा अक्सर होता है जब इस बारे में अनुमान आधारित आकलन जारी किए जाते हैं और स्थिति बिगड़ने की भी आशंका जताई जाती है।

इसके अलावा, मौसम की अनिश्चितता को ध्यान में रख कर सरकारों को अपने स्तर पर भी बचाव के इंतजाम से लेकर बरसात और बिजली गिरने को लेकर आम लोगों को सावधानी बरतने के लिए जागरूक करने की जरूरत होती है। मगर बरसात से पैदा हालात यह बताने के लिए काफी हैं कि अव्यवस्था के प्रति लापरवाही किस हद तक कायम रहती है।

आखिर इंसानी रिहाइश के सभी इलाकों में जल-निकासी की ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की जाती कि बारिश का स्तर चाहे जो हो, किसी भी गली या सड़क पर जल जमाव न हो। सरकार और संबंधित महकमे की नींद तभी क्यों खुलती है, जब मौसम की वजह से विकट स्थिति पैदा हो जाती है। यह बेवजह नहीं है कि कई बार बेकाबू हो जाने के बाद हालात को संभालना भी मुश्किल हो जाता है और नाहक ही लोगों की जान चली जाती है।