दुनिया में कहीं भी युद्ध चल रहा होता है तो उसमें शामिल दोनों पक्ष एक-दूसरे को कठघरे में खड़ा करते हैं। इजराइली सीमा के भीतर घुस कर जब हमास ने हमला किया था, तब तमाम देशों ने हमास की आलोचना की थी और इजराइल ने अपने जवाबी हमले को बचाव की कोशिश बताया था। मगर उसके बाद से युद्ध जिस शक्ल में जारी है, इजराइली हमलों में गाजा पट्टी में करीब तीस हजार लोग मारे जा चुके हैं, उसे देखते हुए अब इजराइल की गतिविधियों की अनदेखी कर पाना खुद उसके पक्ष में खड़े देशों के लिए भी संभव नहीं जान पड़ रहा है।
ऐसे हमला करने के बारे में सोचना भी मुश्किल
यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि घोषित तौर पर युद्ध जारी रहने के बावजूद किसी देश के सैनिक ऐसे लोगों पर हमला कर देंगे, बहुतों को मार डालेंगे, जो भूखे और लाचार खड़े कहीं से मानवीय मदद और भोजन मिल जाने की आस में थे। गुरुवार को उत्तरी गाजा में भूख का सामना कर रहे लोग मानवीय मदद पहुंचने और भोजन का इंतजार कर रहे थे, तभी इजराइली टैंकों के जरिए उन पर अंधाधुंध गोलीबारी की गई, जिसमें एक सौ बारह लोग मारे गए।
इजराइली सैनिकों की इस कार्रवाई के बाद जहां अमेरिका और फ्रांस जैसे सहयोगी देश भी नाराज और दुखी हैं, ब्राजील, जर्मनी आदि कई देशों सहित संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने भी निंदा करते हुए इसकी जांच की मांग की है, मगर इजराइल के रुख में कोई नरमी नहीं दिख रही। भारत ने भी कहा है कि इस तरह से इतने लोगों का मारा जाना और गाजा में स्थिति ‘अत्यंत चिंता’ का विषय है।
सवाल है कि आज क्या तमाम देशों की सहमति से तय किए गए अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों पर अमल की अनिवार्यता समाप्त हो गई है कि युद्ध के दौरान किन हालात में और किन पर हमला करना है और कहां नहीं? आम लोगों, अस्पतालों, स्कूलों, शरणस्थलों जैसी कई जगहें तय की गई हैं, जिनमें विकट स्थितियों में भी हमला करने की मनाही होती है। मगर जो इजराइल अब तक फिलिस्तीन पर हमले को अपनी जवाबी कार्रवाई बताता रहा है, क्या वह भूख से लाचार लोगों पर इस तरह हुई गोलीबारी को सही ठहरा सकता है?
