देश भर में फैले ज्यादातर कोचिंग संस्थानों में जितने भी विद्यार्थी पढ़ाई करने जाते हैं, उसकी मुख्य वजह यही होती है कि ऐसी जगहों के बारे में उन्हें यह बताया जाता है कि वहां से निकले सभी प्रतिभागियों को हर हाल में नौकरी मिलेगी। ऐसे कोचिंग संस्थानों के बारे में सार्वजनिक प्रचारों में वहां पढ़ने वाले विद्यार्थियों की कामयाबी और मनपसंद जगह पर चुन लिए जाने के बारे में जैसे दावे किए जाते हैं, उनमें से ज्यादातर सच्चाई से दूर होते हैं, लेकिन वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले नए विद्यार्थियों को अपने आकर्षण के जाल में उलझाने में कामयाब हो जाते हैं।

दरअसल, कोचिंग संस्थानों के बारे में तैयार प्रचार सामग्री को अक्सर भ्रामक तरीके से पेश किया जाता है, तो कई बार झूठे दावे परोसने में भी संकोच नहीं किया जाता। ऐसा इस हकीकत के बावजूद किया जाता है कि सार्वजनिक रूप से किए गए ऐसे दावे कभी कसौटी पर भी रखे जा सकते हैं और उसके बाद उस पर सवाल उठाए जा सकते हैं।

तीन कोचिंगों पर लगा पंद्रह लाख का जुर्माना

गौरतलब है कि केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण यानी सीसीपीए ने तीन कोचिंग संस्थानों पर इस वजह से पंद्रह लाख रुपए का जुर्माना लगाया है कि उन्होंने सिविल सेवा परीक्षाओं में प्रतिभागियों की सफलता की दर के बारे में भ्रामक तथ्य परोसे थे। सीसीपीए ने अपनी पड़ताल में यह पाया कि कोचिंग संस्थानों ने जानबूझ कर यह बात छिपाई कि उनके ज्यादातर सफल अभ्यर्थियों ने केवल साक्षात्कार मार्गदर्शन कार्यक्रमों में पंजीकरण कराया था। जबकि इसी दावे की वजह से वहां के अन्य पाठ्यक्रमों की प्रभावशीलता के बारे में एक भ्रामक धारणा बनी।

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विद्यार्थियों का आर्थिक शोषण और उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किस पैमाने पर किया जाता है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सीसीपीए ने जिन कोचिंग संस्थानों पर जुर्माना लगाया है, उनमें से एक की ओर से अपने बारे में किए गए प्रचार में 2022 की संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में ‘933 में से 617 चयन’ का दावा किया गया, जबकि वहां सफल अभ्यर्थियों में से ज्यादातर ने केवल साक्षात्कार की तैयारी के लिए पाठ्यक्रम में पंजीकरण कराया था। इसी तरह, कई बार प्रतियोगिता परीक्षाओं के नतीजे आने के बाद एक ही उत्तीर्ण अभ्यर्थी की तस्वीर के साथ अनेक कोचिंग संस्थान अपने विज्ञापनों में उसके अपने यहां पढ़ाई किए होने का दावा करते हैं।

जानबूझ कर जानकारी झिपाना भ्रामक विज्ञापनों के दायरे में

जाहिर है, यह एक तरह का भ्रम परोस कर अपने संस्थान में पढ़ने के लिए आकर्षित करने की हरकत है। दूसरी ओर, अपने आंतरिक ढांचे के भीतर शिक्षण का प्रारूप, शिक्षकों और उनकी योग्यता का ब्योरा, संसाधन आदि के बारे में पारदर्शिता का निर्वाह शायद ही कभी किया जाता है। सवाल है कि जो तथ्य सार्वजनिक पटल पर होते हैं और उन्हें कोई भी थोड़ी कोशिश करके जान सकता है, उसके जरिए प्रकारांतर से ठगी का धंधा कैसे चलता रहता है। इस संबंध में केंद्र सरकार ने सख्त नियम भी बनाए हैं।

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उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत जानबूझ कर महत्त्वपूर्ण जानकारी छिपाने संबंधी प्रचार भ्रामक विज्ञापनों के दायरे में आते हैं। हाल ही में सीसीपीए ने भ्रामक प्रचार करने वाले कई अन्य कोचिंग संस्थानों पर भी भारी जुर्माना लगाया था। विडंबना यह है कि नियम-कायदों की अनदेखी करके अपने प्रचार के क्रम में कई कोचिंग संस्थान जो दावे करते हैं, उसमें पारदर्शिता सुनिश्चित करना उन्हें जरूरी नहीं लगता। यह समझना मुश्किल है कि सीमित अवसरों के दौर में ‘सौ फीसद चयन’ जैसी गारंटी का दावा करने में कोई संकोच क्यों नहीं होता!