ऐसे में अगर भारत में सोने के आयात के मामले में भी गिरावट देखी जा रही है तो यह स्वाभाविक ही है। मगर चूंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सोने की अहमियत जगजाहिर है, इसलिए निश्चित रूप से इस गिरावट को एक चिंता के तौर पर ही देखा जाएगा।
हालांकि मौजूदा समय में दुनिया के ज्यादातर देशों में आर्थिक गतिविधियों में मुद्रा और लेनदेन के स्वरूप में जिस तेजी से बदलाव आ रहा है, उसके मद्देनजर सोने की ओर आकर्षण लाजिमी है। लेकिन सवाल है कि आखिर सोने की खरीद के लिए हर स्तर पर जरूरी कारक या आर्थिक मजबूती को सुनिश्चित किए बिना अर्थव्यवस्था को उड़ान कैसे मिलेगी।
वाणिज्य मंत्रालय ने जो ताजा आंकड़ा जारी किया है, उसके मुताबिक, वैश्विक स्तर पर जारी आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण भारत में सोने के आयात में 2022-23 में 24.15 फीसद की गिरावट आई और यह घट कर पैंतीस अरब डालर रह गया है। इसमें ऊंचे आयात शुल्क की भी खासी भूमिका मानी जा रही है। भारत में पिछले वित्त वर्ष यानी 2021-22 में ‘पीली धातु’ यानी सोने का आयात 46.2 अरब डालर रहा था।
यह माना जाता है कि सोने के आयात से देश के चालू खाते के घाटे को कम करने में मदद मिलती है। हालांकि इस बार सोने के आयात में भारी गिरावट के बावजूद देश के व्यापार घाटे को कम करने में मदद नहीं मिली है। आयात और निर्यात के अंतर को व्यापार घाटा कहा जाता है। वित्त वर्ष 2022-23 में व्यापार घाटा दो सौ सड़सठ अरब डालर रहने का अनुमान है।
यह व्यापार घाटा इससे पिछले वित्त वर्ष में करीब एक सौ इक्यानबे अरब डालर रहा था। जाहिर है, सोने से जुड़े अर्थ-तंत्र में कई पहलू एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और इसकी खरीदारी के मामले में जो तस्वीर बनती है, उसका असर दूसरे क्षेत्र पर पड़ता है। भारत को सोने के सबसे बड़े बाजार के तौर पर देखा जाता रहा है। सोने के आयात के जरिए देश के आभूषण उद्योग की मांग को भी पूरा किया जाता है। अगर मात्रा के लिहाज से देखें तो भारत सालाना करीब आठ सौ से नौ टन सोने का आयात करता है।
पिछले कुछ दशकों के दौरान जैसे-जैसे समृद्धि में बढ़ोतरी हुई है, उसी मुताबिक सोने की मांग में भी इजाफा हुआ है। लेकिन पिछले दो-तीन साल में महामारी और पूर्णबंदी जैसे हालात की वजह से अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा, उसमें लोगों की आय और क्रयशक्ति पर इसका सीधा असर पड़ा। फिर शादी जैसे समारोह टलने जैसी कुछ वजहों से सोने में निवेश पर नकारात्मक असर पड़ा है।
इसके समांतर समृद्धि का सूचकांक आमतौर पर वैश्विक अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव पर भी निर्भर करता है। यों सोना कुछ भी उत्पादन नहीं कर सकता है और इस तरह इसे एक अनुत्पादक संपत्ति के तौर पर देखा जाता है। इसकी वृद्धि इस विश्वास पर टिकी होती है कि भविष्य में इसके लिए ज्यादा भुगतान हासिल किया जा सकेगा।
इसी संदर्भ में अगर शेयरों या ऋण के माध्यमों में कोई निवेश किया जाता है तो यह देश की उत्पादकता और आर्थिक विकास में योगदान देगा। वैश्विक स्तर पर सोने को लेकर जैसा रुझान देखने में आ रहा है, उस लिहाज से देखें तो भारत में इसके आयात के मामले में खासी कमी निश्चित तौर पर थोड़ी चिंता की बात है। लेकिन यह भी सच है कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अक्सर उतार-चढ़ाव की स्थिति आती रहती है और संभव है कि सोने के आयात के मामले में आई गिरावट का क्रम फिर जल्दी ही बदलेगा।