असम और मिजोरम के बीच एक बार फिर तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। करीब महीना भर पहले यहां दोनों राज्यों के लोगों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें पांच पुलिस कर्मियों सहित कुल छह लोग मारे गए और पैंतालीस घायल हो गए थे। उसे लेकर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच ट्विटर पर जुबानी जंग भी हुई थी। मिजोरम ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज करा दी थी। तब गृहमंत्री अमित शाह के हस्तक्षेप से दोनों मुख्यमंत्रियों के बीच सुलह हो पाई थी।

मगर फिर से एक सड़क के निर्माण को लेकर वहां तनाव बढ़ने लगा है। जहां ताजा विवाद शुरू हुआ है वह उस जगह से कुछ ही दूरी पर है, जहां पिछले महीने हिंसा हुई थी। प्रधानमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत असम-मिजोरम सीमा पर एक सड़क बन रही थी। उस पर मिजोरम के लोगों ने एतराज जताया कि असम सरकार उनके हिस्से की जमीन पर सड़क बना रही है। बढ़ते तनाव को देखते हुए वहां केंद्रीय सुरक्षा बल की तैनाती कर दी गई है और फिलहाल सड़क निर्माण का काम रोक दिया गया है। इस तरह यह मामला शांत तो हो गया है, मगर यह इस बात का संकेत है कि दोनों राज्यों के बीच कहीं न कहीं चिनगारी सुलग रही है।

असम को न सिर्फ मिजोरम, बल्कि अन्य समीपवर्ती राज्यों से भी लगातार चुनौती मिलती रही है। कुछ दिनों पहले ही नगालैंड के कर्बी आंगलांग जिले से सटे असम के हिस्से में अज्ञात लोगों ने सात ट्रकों में आग लगा दी थी, जिसमें पांच ट्रक ड्राइवर मारे गए थे। असम पुलिस ने माना था कि इस घटना के पीछे नगालैंड में सक्रिय उग्रवादी संगठन दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी का हाथ था। यह संगठन असम की सुरक्षा व्यवस्था को पहले भी चुनौती देता रहा है।

दरअसल, पूर्वोत्तर के सातों राज्य असम के अलग-अलग हिस्सों को काट कर बनाए गए हैं। उन्हें कई चीजों को लेकर एतराज रहता है। नगालैंड के कुछ लोग अपनी जातीय अस्मिता का हवाला देते हुए स्वतंत्रता की मांग करते रहे हैं। इसी तरह मिजोरम के सीमावर्ती जिलों के लोगों का कहना है कि उनके हिस्से की काफी जमीन असम ने हड़प रखी है। इन सारे झगड़ों को आखिरकार असम को ही झेलना पड़ता है। इन झगड़ों को सुलझाने का प्रयास काफी लंबे समय से चल रहा है, पर अब तक कोई व्यावहारिक रास्ता नहीं निकल पाया है।

एक ही देश और शासन-व्यवस्था के भीतर जब राज्यों के लोग सीमा विवाद में उलझे दिखाई दें और उसमें राज्यों की पुलिस आपस में दो देशों की सेनाओं की तरह भिड़ जाएं, तो इससे गणतांत्रिक व्यवस्था पर ही सवाल खड़े होने लगते हैं। असम और मिजोरम के बीच महीना भर पहले भड़के विवाद से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गलत संदेश गया था।

हालांकि उस घटना से कुछ दिनों पहले ही केंद्रीय गृहमंत्री इसी आशय से पूर्वोत्तर की यात्रा पर गए थे कि सीमा विवाद में उलझे इन राज्यों के बीच सुलह का कोई व्यावहारिक रास्ता निकाला जाए। इसके लिए उन्होंने पूर्वोत्तर के सभी राज्यों से बातचीत की, उन्होंने शांतिपूर्ण ढंग से रहने का भरोसा भी दिलाया, मगर हफ्ता भर भी नहीं हुआ कि वहां शर्मनाक तरीके से हिंसा हो गई। पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर शिकायत रही है कि केंद्र सरकार उनकी तरफ समुचित ध्यान नहीं देती। जब तक केंद्र सरकार गंभीरता से इन राज्यों के विवादों को सुलझाने का प्रयास नहीं करेगी, ऐसी घटनाओं को रोकना मुश्किल बना रहेगा।