इसी के मद्देनजर भारत सरकार ने वैज्ञानिक शोधों को बढ़ावा देने के मकसद से राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन यानी एनआरएफ गठित करने का फैसला किया है। इससे संबंधित विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है।

अगले पांच साल की अवधि के लिए इसमें पचास हजार करोड़ रुपए की राशि भी मंजूर कर दी गई है। माना जा रहा है कि इससे वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में तेजी आएगी और तकनीकी मामलों में दूसरे देशों पर निर्भरता कुछ कम होगी। इसी से जुड़ा एक फैसला विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने भी किया है।

उसने विश्वविद्यालयों और उद्योगों के परस्पर सहयोग से वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। शैक्षणिक संस्थान वैज्ञानिक अनुसंधान के बड़े मंच होते हैं। वहां के अनुसंधानों से उद्योग जगत को भी मदद मिलती है। मगर पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा है कि उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों के बीच तालमेल ठीक नहीं रहता।

उद्योगों से अगर वित्तीय मदद मिले, तो तकनीकी शिक्षण संस्थानों में उत्कृष्ट शोध सामने आ सकते हैं। इसी मकसद से यूजीसी ने एक बार फिर दोनों के बीच के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने का प्रयास शुरू किया है।

तकनीकी संसाधनों के विकास और उन्हें निरंतर अद्यतन करने के लिए सतत अनुसंधान की जरूरत पड़ती है, मगर स्थिति यह है कि हमारे यहां शोध और नवाचार पर दुनिया के दूसरे देशों की अपेक्षा बहुत कम खर्च किया जाता है। केंद्र सरकार ने नए फाउंडेशन की स्थापना करके इस दिशा में आवश्यक धन उपलब्ध कराने का संकल्प लिया है।

शुरुआती चरण में इसके लिए पचास हजार करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराने का तय किया गया है। इसके अलावा करीब छत्तीस हजार करोड़ रुपए धर्मादा संस्थाओं, उद्योगों आदि के जरिए एकत्र करने की योजना है। दरअसल, धन की कमी की वजह से हमारे यहां वैज्ञानिक शोध की दिशा में प्रगति नहीं हो पाती।

प्रयोगशालाओं में जरूरी संसाधन, अत्याधुनिक उपकरण उपलब्ध नहीं हैं, जिनके जरिए नए शोधों की दिशा में आगे बढ़ा जा सके। विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों को सरकारी खजाने से इतना पैसा नहीं मिल पाता कि वे अपनी प्रयोगशालाओं को उन्नत बना सकें। यही वजह है कि बहुत सारे शोधार्थी दूसरे देशों का रुख करते और वहां अपनी परिकल्पनाओं को साकार करने में कामयाब होते हैं।

नए फाउंडेशन की स्थापना और उद्योगों के साथ विश्वविद्यालयों, तकनीकी संस्थानों का तालमेल बेहतर करने के प्रयासों से इस दिशा में कुछ सकारात्मक परिणाम आने की उम्मीद जगी है। मगर देखने की बात है कि शैक्षणिक संस्थान किस हद तक उद्योगों की जरूरतों को पूरा कर पाते हैं। यह व्यवस्था कोई नई नहीं है।

इसके लिए विज्ञान अनुसंधान परिषद और देश की विभिन्न प्रयोगशालाओं के साथ उद्योगों को जोड़ा गया था, मगर उद्योगों ने इन शोधों की तरफ से हाथ खींचना शुरू कर दिया, तो इसीलिए कि उनसे उनका मकसद पूरा नहीं हो पा रहा था। ऐसे में यह जरूरत अब भी बनी हुई है कि प्रयोगशालाओं और अनुसंधान के क्षेत्र में उन्नति के लिए शोधों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को बढ़ाना होगा।

नई परिकल्पनाओं और वैज्ञानिक चुनौतियों के मद्देनजर प्रयोगशालाओं को अत्याधुनिक साजो-सामान से लैस करना होगा। अगर प्रयोगशालाएं उन्नत होंगी और शोध की गुणवत्ता समय की जरूरतों के मद्देनजर विश्वसनीय होगी, तभी इस दिशा में पूरी कामयाबी का भरोसा किया जा सकता है।