असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले हुनरमंद लोगों को प्रोत्साहन की जरूरत लंबे समय से रेखांकित की जाती रही है। ऐसे लोग जो पारंपरिक पेशों से जुड़े हैं, हाथ का काम करते और भारतीय शिल्प को संरक्षित रखने में योगदान देते हैं, उनकी उपेक्षा और बदहाली को लेकर अक्सर लिखा-कहा जाता है। अब केंद्र ने प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के तहत ऐसे लोगों को वित्तीय मदद पहुंचाने, पहचान प्रतिष्ठित करने और उनके हुनर को बाजार में जगह दिलाने की पहल की है।
इस योजना के तहत पांच फीसद ब्याज पर एक लाख और फिर अगले चरण में अधिक धन उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। इस योजना के तहत अगले पांच वर्षों में तीस लाख पारंपरिक कामगार परिवारों को लाभ मिलने का दावा है। इसमें तेरह हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा। निस्संदेह इस योजना से ऐसे लोगों को प्रोत्साहन मिलेगा, जो मिट्टी के बरतन बनाने, चटाई बुनने, लुहारगीरी, सुनारगीरी आदि हस्तशिल्प के पारंपरिक पेशों से जुड़े हैं।
ऐसे लोग प्राय: पैसे की कमी के चलते अपने पेशे को बड़ा व्यावसायिक मंच नहीं बना पाते। अपने उत्पाद को बड़े बाजार तक नहीं पहुंचा पाते। इस लिहाज से यह योजना काफी मददगार साबित हो सकती है, बशर्ते इसे संजीदगी से लागू किया जाए।
हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब ऐसे पारंपरिक हस्तकौशल से जुड़े कामगारों को प्रोत्साहित करने के लिए कोई योजना चलाई जा रही है। पहले भी अलग-अलग प्रांतों के हस्तशिल्प को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में जगह दिलाने के मकसद से योजनाएं चलाई जाती रही हैं। अनेक स्वयंसेवी संगठन और सरकारी केंद्र इस दिशा में लगातार प्रयासरत देखे जाते हैं।
जगह-जगह विशेष हाट, बाजार और विक्रय केंद्र बना कर हस्तशिल्प को मंच देने की कोशिश की जाती रही है। मगर प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना उन सबसे इस मायने में अलग कही जा सकती है कि इसमें हस्तशिल्पियों को सीधे वित्तीय मदद उपलब्ध हो सकेगी। इससे उन्हें अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने, उन्नत बनाने की दिशा में नए ढंग से सोचने, आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल करने का अवसर मिलेगा।
बहुत सारे ऐसे कामगार गुरु-शिष्य परंपरा के तहत दूर-दराज के इलाकों में हस्तशिल्प सीखते हैं। उन्होंने किसी प्रकार की व्यवस्थित शिक्षा नहीं ली है। स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वे छोटी-मोटी चीजें बनाते और उन्हें बेच कर किसी तरह अपना गुजारा चलाते हैं। विश्वकर्मा योजना से उनका आत्मविश्वास बढ़ सकता है कि वे भी सुशिक्षित उद्यमियों की तरह अपने कौशल को व्यावसायिक रूप दे सकते हैं।
केंद्र सरकार का जोर कौशल विकास पर है। दुनिया भर में माना जा रहा है कि वही अर्थव्यवस्थाएं मजबूत होंगी, जिनमें कौशल विकास पर जोर दिया जाता है। इस दृष्टि से भी यह योजना स्थानीय स्तर पर कौशल विकास की दिशा में एक बेहतर कदम कही जा सकती है। मगर जिस तरह दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाएं भारी मशीनों और थोक उत्पादन पर निर्भर होती गई हैं, उसमें स्थानीय कौशल को बड़े बाजार में कहां तक जगह मिल पाएगी, कहना मुश्किल है।
हस्तशिल्प को प्रोत्साहन देने वाले पहले के प्रयासों का अनुभव यही है कि आज भी बहुत सारे लोग अपने पारंपरिक पेशे छोड़ कर किसी दूसरे रोजगार, मजदूरी या नौकरी की तलाश में देखे जाते हैं। हालांकि विश्वकर्मा योजना में ऐसे लोगों को बाजार उपलब्ध कराने की बात भी कही गई है, मगर जब तक इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक इसके अपने लक्ष्य तक पहुंचने का दावा नहीं किया सकता।