हर वर्ष मानसून में बाढ़ से देश के अलग-अलग इलाकों में जैसी तबाही सामने आने लगी है, उसकी वजह नदियों में उफान और पानी का बेलगाम हो जाना है। अगर बाढ़ से बचाव के इंतजामों पर समय रहते ध्यान दिया जाए, तो इसकी वजह से जानमाल के व्यापक नुकसान से बचा जा सकता है। यह अफसोसनाक है कि जिन राज्यों में पिछले कुछ वर्षों में बाढ़ की वजह से व्यापक तबाही मची है, उनमें से कई राज्य सरकारों की चिंता में यह पक्ष शामिल नहीं रहा कि बाढ़ से होने वाले नुकसानों से बचाव के इंतजाम पहले ही कर लिए जाएं।
जल शक्ति मंत्रालय की लोकलेखा समिति ने उठाया सवाल
नतीजतन, कई राज्यों में बरसात के मौसम में उफनने वाली नदियां भारी कहर ढाती हैं और व्यापक पैमाने पर जानमाल का नुकसान होता है। यों कुदरती आपदाओं से बचाव में लापरवाही को लेकर सरकारों के रुख पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं, अब जल शक्ति मंत्रालय की लोकलेखा समिति ने भी राज्यों के रवैये पर सवाल उठाया है।
गौरतलब है कि जल शक्ति मंत्रालय की बाढ़ नियंत्रण एवं पूर्वानुमान के लिए योजनाओं की लोकलेखा समिति की एक रपट में पश्चिम बंगाल सहित आठ राज्यों में बाढ़ प्रबंधन कार्यों में दस से तेरह महीनों की देरी को लेकर सवाल उठाया गया है। समिति के मुताबिक, इस देरी की वजह से वास्तविक वित्तपोषण के समय तकनीकी डिजाइन अप्रासंगिक या अप्रचलित हो गए। इस प्रवृत्ति के नतीजे में योजनाओं की लागत में भी भारी इजाफा हो जाता है।
यह हैरानी की बात है कि जब बाढ़ प्रभावित इलाकों में तबाही आती है, जानमाल का व्यापक नुकसान होता है, तब संबंधित राज्य सरकारें इसे प्राकृतिक आपदा बताती और इसके लिए वित्तीय सहायता की मांग करती हैं। मगर यह समझना मुश्किल नहीं है कि अगर बाढ़ प्रबंधन से जुड़े कार्यों में करीब एक वर्ष तक की देरी की जाती है, तो उसके नतीजे क्या होंगे।
यह सही है कि बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है, लेकिन अगर इससे उपजने वाली समस्याओं के संदर्भ में जरूरी प्रबंधन समय पर सुनिश्चित किए जाएं तो नुकसान को काफी कम किया जा सकता है। मगर बाढ़ प्रबंधन के मामले में खुद राज्य सरकारें समयबद्धता का ध्यान न रखें तो नतीजों का अंदाजा लगाया जा सकता है।