विचित्र है कि जो काम लोगों को सामान्य नागरिक बोध से और सामूहिक जिम्मेदारी समझते हुए करना चाहिए, उसके लिए भी सरकार को कड़े कानून बनाने पड़ते हैं। पुलिस को डंडे की भाषा में उनकी जिम्मेदारियां समझानी पड़ती है। कोरोना संकट के समय चिकित्साकर्मियों पर हमले की घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि लोग अपने अधिकारों के लिए आवाज तो बहुत बुलंद करते हैं, पर जब कर्तव्य निभाने की बात आती है तो सहयोग का रुख अपनाना जरूरी नहीं समझते। देश के विभिन्न हिस्सों से चिकित्साकर्मियों और पुलिस कर्मियों पर हमले की घटनाएं सामने आईं। मुरादाबाद और पटियाला की घटनाएं सबसे चिंताजनक थीं। मुरादाबाद में जब चिकित्सादल कोरोना संक्रमितों की पहचान के लिए पहुंचा तो उनकी गाड़ियां तोड़ दी गईं, लोगों ने छतों से ईंटें बरसानी शुरू कर दी, डंडों से पीटने लगे। उसमें सारे चिकित्साकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। पंजाब के पटियाला में जब पुलिस अधिकारी ने घर से बाहर निकले व्यक्ति से पास मांगा तो उसने तलवार से अधिकारी का हाथ ही काट दिया था। ऐसी अनेक घटनाएं देश के विभिन्न हिस्सों में हुईं, जब चिकित्सा दल पर स्थानीय लोगों ने इकट्ठा होकर हमला किया। बहुत सारे अस्पतालों में भी कोरोना संक्रमितों ने डॉक्टरों, नर्सों को गालियां दीं, उनके साथ बदतमीजी की या हमला किया।
इससे नाराज भारतीय चिकित्सा संघ यानी आइएमए ने गृहमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री से चिकित्सकों की सुरक्षा के इंतजाम करने की मांग की। चिकित्सकों के खिलाफ हुए हमलों के विरोध में आइएमए ने काला दिवस मनाने का भी एलान कर दिया था। इसे सरकार ने गंभीरता से लिया और तुरंत महामारी अधिनियम 1897 में संशोधन कर अधिसूचना जारी कर दी। अब चिकित्साकर्मियों पर हमले को गैरजमानती अपराध बना दिया गया है। इसमें सात साल तक की सजा और पचास हजार से लेकर दो लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। अगर ऐसे हमलों में किसी संपत्ति जैसे वाहन, क्लीनिक आदि को नुकसान पहुंचाया जाता है, तो उसकी बाजार कीमत से दो गुना रकम वसूली जाएगी। ऐसी घटनाओं में घायल होने वाले कर्मियों के लिए मुआवजे का भी प्रावधान किया गया है। सरकार ने चिकित्साकर्मियों पर हुए हमलों में से उन्नीस मामलों को गंभीरता से लिया है। उम्मीद की जाती है कि इससे लोगों में कुछ भय पैदा होगा और वे सेवारत चिकित्साकर्मियों के साथ अभद्रता और हमले से बाज आएंगे।
कोरोना संक्रमण का चक्र तोड़ना बड़ी चुनौती है। इसलिए जब पूर्णबंदी की घोषणा की गई, तो लोगों से घरों में रहने और इस पर काबू पाने के अभियान में लगे लोगों का सहयोग करने, उनका मनोबल बढ़ाने की अपील भी की गई थी। तब तो लोगों ने थालियां बजाईं, दीये जलाए थे, पर वे शायद भूल गए कि चिकित्साकर्मी और पुलिस अपनी जान जोखिम में डाल कर उनकी सुरक्षा के लिए ही प्रयास कर रहे हैं। जहां भी कोरोना विषाणु के निशान मिलने की आशंका होती है, वहां पहुंच रहे हैं, लोगों की जांच कर उन्हें उपचार उपलब्ध करा रहे हैं। इस अभियान में बहुत सारे चिकित्साकर्मी खुद संक्रमित हो चुके हैं। ऐसे में उनका सहयोग करना अपेक्षित है। मगर हैरानी की बात है कि कुछ लोग गलत धारणाओं के चलते सहयोग तो दूर, उन पर हमले करने से भी परहेज नहीं करते। इससे दोहरी चुनौती उत्पन्न हो गई थी। इसलिए अध्यादेश जारी कर सरकार ने उचित ही इस प्रवृत्ति पर काबू पाने का प्रयास किया है।