रूस से हमारी दोस्ती पुरानी तो है ही, इसमें जैसी निरंतरता रही है वैसी किसी और देश के साथ भारत के संबंधों में नहीं रही। इसलिए स्वाभाविक ही भारत-रूस मैत्री को लेकर भारतीय जन-मानस में एक रूमानी भाव रहा है। लेकिन दोनों देशों के आपसी रिश्तों की प्रगाढ़ता भले कायम हो, उनकी गतिशीलता पिछले कुछ बरसों में जरूर कम हुई। सोवियत जमाने में भारत को रूस से अपनी ढांचागत सुविधाओं के निर्माण, सार्वजनिक उपक्रमों के विस्तार, तकनीकी और सामरिक क्षमता बढ़ाने में भरपूर मदद मिली थी। पर भूमंडलीकरण के दौर में भारत अपने अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान का दायरा लगातार बढ़ता गया है। इसी क्रम में रूस पर उसकी निर्भरता घटी और पश्चिम के साथ लेन-देन बढ़ता गया। आज की दुनिया में विदेश नीति के मानक काफी हद तक व्यापारिक हित हो गए हैं। रूस से भारत के रिश्तों में भी यह नया आयाम दिखाई देता है। रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन यों तो पंद्रहवीं सालाना शिखर बैठक के लिए आए, पर पहले की द्विपक्षीय शिखर बैठकों के बरक्स इस बार व्यापारिक मुद््दे ज्यादा अहम थे। इसमें दोनों पक्षों की दिलचस्पी थी।

यूक्रेन के विवाद को लेकर रूस पश्चिमी खेमे यानी यूरोपीय संघ और अमेरिका के प्रतिबंधों की मार झेल रहा है। पुतिन मानें या न मानें, इन कारोबारी बंदिशों से रूस की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। इसलिए वे एशिया खासकर चीन और भारत से व्यापारिक संबंध बढ़ाने के लिए लालायित हैं। दूसरी ओर, मोदी सरकार भले अमेरिका से नजदीकी बढ़ाने के लिए व्यग्र है, पर रूस की अहमियत को अनदेखा नहीं कर सकती। वीटोधारी देशों में रूस ही है जिसने सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की भारत की दावेदारी के समर्थन सहित तमाम कूटनीतिक मामलों में हमारा सबसे ज्यादा साथ दिया है। फिर, रूस के पास तेल और गैस का विशाल भंडार है, रक्षा सहित कई क्षेत्रों की उन्नत टेक्नोलॉजी भी। कूटनीति और व्यापारिक, दोनों लिहाज से उसके महत्त्व को भारत कभी अनदेखा नहीं कर सकता। शायद यह भी वजह रही हो कि यूक्रेन-विवाद के मद्देनजर अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ दिखने से भारत बचता रहा है। फिर भी, पुतिन के दिल्ली आने से कुछ समय पहले भारत का रुख ठंडा दिख रहा था। इसका कारण शायद पाकिस्तान और रूस के बीच वह करार था, जिसके तहत रूस ने पाकिस्तान को सैन्य हेलिकॉप्टर देने का वादा किया है।

दिल्ली आने से पहले पुतिन को इस करार की बाबत सफाई देने की जरूरत महसूस हुई और भारत ने उनका परंपरागत जोश से स्वागत किया। दोनों पक्षों के बीच बीस समझौते हुए। अधिकतर समझौते रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित हैं। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना रूस की मदद से ही शुरू हुई थी। रूस अब भारत के लिए बारह और परमाणु रिएक्टर बनाएगा, पर ये रिएक्टर भारत में ही बनाए जाएंगे। भारत ने अपने रक्षा उद्योग के लिए भी रूस से यहीं कल-पुर्जे बनाने का आग्रह किया है। भारतीय कंपनियों को रूस में तेल और गैस के क्षेत्र में खोज और दोहन की अनुमति मिली है। दवा, उर्वरक, कोयला आदि के मामले में भी आपसी सहयोग का विस्तार होगा। मोदी और पुतिन की बातचीत में जो अंतरराष्ट्रीय मुद्दे शामिल थे उनमें आतंकवाद से निपटने के अलावा अफगानिस्तान साझी चिंता का प्रमुख विषय था। दशकों से सौहार्दपूर्ण संबंध के बावजूद दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार, संभावनाओं के मुकाबले, काफी सिमटा रहा है। चीन से रूस का सालाना व्यापार जितना है, वह भारत से होने वाले उसके व्यापार से पंद्रह गुना अघिक है। पुतिन की इस यात्रा के अवसर पर हुए समझौतों से, जाहिर है, इसमें काफी बढ़ोतरी हो सकेगी।

 

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