भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को जल्द से जल्द हल करने पर सहमत हुए हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गत गुरुवार को कजाकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन से इतर अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ बैठक कर इस मसले पर विस्तार से बातचीत की। इस दौरान भारत ने अपना रुख दोहराते हुए कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सम्मान करने के साथ ही सीमा पर शांति बहाली आवश्यक है। इससे दोनों देशों के बीच सीमा पर हालात सामान्य होने और द्विपक्षीय संबंधों में सुधार को लेकर उम्मीद की एक नई किरण नजर आई है।

विदेश मंत्री ने चीनी नेता से कहा संबंधों में संवेदनशीलता हो

दरअसल, विदेश मंत्री ने अपने चीनी समकक्ष के साथ वार्ता में साफ कहा कि दोनों देशों के बीच संबंध पारस्परिक सम्मान, आपसी हित और संवेदनशीलता पर आधारित होने चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सीमा पर शांति और द्विपक्षीय संबंधों में स्थिरता तभी आएगी, जब सीमा प्रबंधन के लिए अतीत में दोनों पक्षों के बीच हुए द्विपक्षीय समझौतों और नियमों का पूरी तरह पालन किया जाएगा।

भारत-चीन के बीच एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए अतीत में कई समझौते हुए हैं, जिनमें यह बात भी शामिल रही कि कोई भी देश सीमा विवाद को लेकर एक-दूसरे के खिलाफ सेना या किसी अन्य तरह के बल का प्रयोग नहीं करेगा और एलएसी के जिन इलाकों को लेकर सहमति नहीं बनी है, वहां सैन्य गश्त नहीं होगी। दोनों देशों की सीमा पर यथास्थिति बनी रहेगी। मगर सवाल है कि क्या चीन की ओर से इन बातों पर अमल को लेकर कभी गंभीरता दिखाई गई?

यह छिपा नहीं है कि चीन की सेना की ओर से समय-समय पर इन समझौतों का उल्लंघन किया जाता रहा है, सीमा पर गलत तरीके से घुसपैठ करके भारत के लिए मुश्किल पैदा करने की कोशिश की जाती रही है। मई, 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी की घटना चीन की इसी हरकत का नतीजा थी, जब चीनी सेना समझौते को तोड़कर पूर्वी लद्दाख में निर्धारित बिंदुओं से आगे बढ़कर गश्त करने पहुंच गई थी। भारतीय सुरक्षाबलों ने इसका विरोध किया और दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। तब से लेकर पूर्वी लद्दाख में गतिरोध बरकरार है। अरुणाचल प्रदेश में चीन की दखलअंदाजी छिपी नहीं रही है।

ऐसा नहीं कि इस गतिरोध को खत्म करने के प्रयास नहीं हुए। हालांकि दोनों पक्ष टकराव वाले कुछ क्षेत्रों से पीछे हटे हैं, पर चीन की चालबाजी से ये प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं। इस मसले पर दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर की कई दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन इनका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है। भारत-चीन के सैन्य कमांडरों के बीच पिछली वार्ता इसी साल फरवरी में हुई थी, जिसमें दोनों पक्ष सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने पर सहमत हुए, लेकिन गतिरोध के स्थायी समाधान की दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई।

अब भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच वार्ता के जरिए नए सिरे से कूटनीतिक प्रयासों ने इस मसले को सुलझाने के लिए नया आधार दिया है। इस बैठक में दोनों पक्ष इस बात पर भी सहमत हुए कि सीमा क्षेत्रों में वर्तमान में जो हालात हैं, उन्हें लंबा खींचना किसी के भी हित में नहीं है। मगर सवाल यह भी है कि क्या चीन अपने कूटनीतिक वक्तव्यों को यथार्थ की शक्ल देगा? यह इस बात पर निर्भर करता है कि चीन इस वार्ता के निष्कर्षों पर अमल को लेकर कितनी ईमानदार इच्छाशक्ति रखता है।