संचार माध्यमों के बढ़ते उपयोग, हर काम में डिजिटल निर्भरता और इंटरनेट संबद्धता के बीच साइबर सेंधमारों की सक्रियता भी तेजी से बढ़ी है। वे लोगों को ठगने के तरह-तरह के तरीके तलाशते रहते हैं। चूंकि आधुनिक बैंकिंग प्रणाली में ग्राहकों को आटोमेटिक टेलर मशीन और इंटरनेट सुविधा से जोड़ दिया जाता है, इसलिए ज्यादातर साइबर अपराधियों की नजर लोगों के बैंक खातों पर रहती है। वे झूठे संदेश और ‘इंटरनेट लिंक’ भेज कर लोगों को भरमाते हैं और जैसे ही उनके संदेश को खोला जाता है, सेंधमार उनके बैंक खाते तक अपनी पहुंच बना लेते हैं।
Artificial Intelligence के जरिए धोखाधड़ी करने वालों पर रखेगा नजर
ऐसे ठगी करने वाले न केवल भारत में, बल्कि दुनिया के किसी भी हिस्से में बैठ कर अपनी साजिशों को अंजाम देते रहते हैं। हमारे देश में इस तरह रोज हजारों लोग ठगी का शिकार होते हैं। यह बैंकों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। इस समस्या से पार पाने के लिए अब संचार विभाग एक ऐसा पोर्टल शुरू करने जा रहा है, जो कृत्रिम मेधा के जरिए ऐसे धोखाधड़ी करने वालों पर नजर रखेगा और उनकी पहचान कर उन पर शिकंजा कसेगा। इस पोर्टल से निस्संदेह आम लोगों को ठगी से बचने में काफी मदद मिलेगी।
भोले-भाले लोगों के अलावा पढ़े-लिखे लोग भी बनते रहे शिकार
हालांकि इंटरनेट के जरिए सेंधमारी की प्रवृत्ति पुरानी हो चुकी है। पहले ठगी करने वाले लोगों को मेल भेज कर उनके बैंक खातों तक पहुंचने का प्रयास करते थे। फिर मोबाइल संदेशों के जरिए ऐसा करने लगे। सीधा फोन करके भी लोगों को झांसा देने वाले बड़ी संख्या में सक्रिय हैं। वे भोले-भाले लोगों को फोन कर उनके बैंक का विवरण प्राप्त कर उनके खाते से पैसा निकाल भागते हैं। इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने व्यापक रूप से जागरूकता अभियान चलाया, जिससे लोग धोखाधड़ी करने वालों के चंगुल में फंसने से बचने लगे।
सरकारों, बैकिंग प्रणाली और डेटा संग्रह करने वाले तंत्रों के लिए चुनौती
तब उन्होंने वाट्सऐप के जरिए संदेश भेज कर लोगों को फंसाने की कोशिश शुरू की। अब तो सोशल मीडिया मंचों पर भी किसी न किसी तरह ऐसे सेंधमार घुस कर लोगों को भरमाने और ठगने का प्रयास करते देखे जाते हैं। वे ऐसे शातिर तरीके आजमाते हैं, जिससे न केवल भोले-भाले, बल्कि अच्छे पढ़े-लिखे लोग भी उनके झांसे में आ जाते हैं। कई कंपनियों के खातों में भी ये सेंधमारी कर चुके हैं। इस तरह ये दुनिया भर की सरकारों, बैकिंग प्रणाली और डेटा संग्रह करने वाले तंत्रों के लिए चुनौती बनते गए हैं।
भारत में चूंकि सतर्कता का स्तर अन्य देशों की अपेक्षा कम देखा जाता है, इसलिए यहां साइबर अपराधियों की सक्रियता भी अधिक है। ऐसे अपराधियों के नए-नए केंद्र बन रहे हैं। हालांकि कुछ बैंकों ने अपने सुरक्षा तंत्र में कृत्रिम मेधा के जरिए ठगी करने वालों पर नजर रखने की व्यवस्था कर रखी है, फिर भी ये शातिर अपराधी उनमें घुसपैठ का रास्ता तलाश ही लेते हैं।
संचार विभाग इस सेंधमारी के विरुद्ध कितना मजबूत और व्यावहारिक कवच तैयार कर पाता है, देखने की बात है। कुछ वर्ष पहले जब अनचाही कालों से लोग परेशान थे, तब संचार विभाग ने एक ऐसा नंबर लोगों को उपलब्ध कराया था, जिस पर उस काल करने वाले का नंबर डाल दिया जाए, तो वह स्वत: निरस्त हो जाता था। इसी तरह का कवच आम लोगों को भी उपलब्ध कराया जाए, जिसके जरिए लोग सेंधमारों की पहचान कर उनकी शिकायत दर्ज करा सकें, तो शायद इस दिशा में अधिक कामयाबी मिल सकती है।