पिछले दो दिनों से शेयर बाजार के संवेदी सूचकांक में जिस तरह गिरावट का रुख बना हुआ है, उससे स्वाभाविक ही निवेशकों में अफरा-तफरी का माहौल है। हालांकि विशेषज्ञों की सलाह है कि गिरावट का यह दौर लंबा नहीं चलेगा, मगर आशंकाओं के बादल अभी छंट नहीं पा रहे। इसकी कुछ वजहें साफ हैं। मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें पचास डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे चले जाने और ग्रीस के यूरो क्षेत्र से बाहर होने की आशंका के चलते निवेशकों का भरोसा डगमगा गया है। हालांकि शेयर बाजार में गिरावट केवल भारत में नहीं, पूरी दुनिया में बनी हुई है। मगर दूसरे देशों के डेढ़ से दो फीसद की तुलना में यहां तीन फीसद तक की गिरावट चिंताजनक मानी जा रही है।

यों भारतीय निवेशकों के लिए कच्चे तेल की कीमतों में कमी से घबराहट की कोई तुक नहीं बनती, लेकिन हकीकत यह है कि विदेशी अप्रत्यक्ष निवेशकों के हाथ खींचते ही भारतीय निवेशकों में हड़बड़ी का माहौल बन जाता है। सेबी ने तेजड़ियों और मंदड़ियों के खेल पर नकेल कसने के लिए कड़े उपाय किए, पर उनका बहुत असर नजर नहीं आ रहा। विदेशी निवेशक संगठित रूप से अलग-अलग देशों में शेयरों के भाव चढ़ाने का प्रयास करते हैं और फिर अचानक अपने हाथ खींच लेते हैं। इस तरह बाजार औंधे मुंह गिर पड़ता है। इस बार भी यही हुआ। भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेश मुख्य रूप से दो रास्तों से आता है। खाड़ी और कुछ यूरोपीय देश ही मुख्य रूप से वाजिब संस्थागत निवेश करते हैं। उन्हीं की आड़ में भारत से काले धन के रूप में गया पैसा मॉरीशस, सिंगापुर आदि देशों से होते हुए यहां के शेयर बाजार में पहुंचता है। वाजिब खरीदारों का रुख नरम होता है तो काले धन के रूप में गया पैसा भी आना रुक जाता है। दिसंबर में विदेशी निवेशकों का रुख लगातार नरम बना रहा।

हालांकि शेयरों के उतार-चढ़ाव से किसी देश की अर्थव्यवस्था का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। जब शेयर बाजार का सूचकांक ऊंचे स्तर पर होता है तब भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त देखी जाती है। मगर इससे देश के आम निवेशकों की गाढ़ी कमाई पर जोखिम जरूर बना रहता है। इसलिए सरकार लगातार तेजी और मंदी का खेल करने वाले निवेशकों पर नजर रखती है। अभी कच्चे तेल की कीमतें गिरने और डॉलर की तुलना में यूरो की स्थिति डगमगाने के अलावा शेयर बाजार में गिरावट के कुछ कारण और हैं।

अनुमान है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। फिर तीसरी तिमाही के नतीजे जारी होने वाले हैं, जिनमें किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं की जा रही। इसलिए भारतीय निवेशकों में कंपनियों की प्रगति को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। पिछले कुछ महीनों में औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन बहुत उत्साहजनक नहीं देखा गया, ऐसे में उनके शेयर खरीदने वालों में निराशा का भाव स्वाभाविक है। हालांकि कच्चे तेल की कीमतों में कमी से उत्पादन लागत में कमी आएगी, उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें घटेंगी और औद्योगिक समूहों को कुछ राहत मिलेगी, इसलिए महंगाई रोकने को लेकर चिंतित सरकार के लिए इसे अच्छा संकेत माना जाना चाहिए। मगर इसके बावजूद अगर कंपनियों के शेयरों के प्रति निवेशकों में अनुत्साह बना हुआ है तो यह सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। तेजड़ियों और मंदड़ियों के संगठित खेल पर रोक लगाने में अगर सेबी के कड़े उपाय काम नहीं आ पा रहे, तो इस दिशा में और व्यावहारिक कदम उठाने की जरूरत है।