तमाम शिक्षाविद प्रचलित परीक्षा प्रणाली में बदलाव की जरूरत रेखांकित करते रहे हैं। यह सुझाव भी जब-तब आता रहा है कि परीक्षा में किताब और नोट्स ले जाने की छूट हो। अब मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस दिशा में पहल भी कर दी है। उसने केंद्र के अलावा राज्यों के भी शिक्षा बोर्डों से कहा है कि वे दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं को पुस्तक आधारित बनाने पर विचार करें। दरअसल, इस मामले में विचार-विमर्श की शुरुआत मंत्रालय ने पिछले साल अक्तूबर में ही कर दी, जब देश भर के शिक्षा बोर्डों की बैठक हुई थी। इसके बाद एक समान प्रश्नपत्र दिए जाने के औचित्य पर विचार करने के लिए समिति गठित की गई। समिति को इस पर भी विचार करना है कि क्या परीक्षा में पुस्तक साथ ले जाने की अनुमति दी जाए। समिति में कुछ शिक्षाविदों के साथ ही कई राज्यों के स्कूली शिक्षा विभागों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। समिति की रिपोर्ट संभवत: इस महीने के अंत तक आए, पर इस पहल से मानव संसाधन विकास मंत्रालय की दिलचस्पी जाहिर है। परीक्षा में आधार-सामग्री की इजाजत दिए जाने के कई लाभ हो सकते हैं। एक तो यह कि इससे नकल करने-कराने की बीमारी जड़ से खत्म हो जाएगी। सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि परीक्षा का उद्देश्य ही काफी हद तक बदल जाएगा। तथ्यों और जानकारियों को रटना और याद रखना परीक्षार्थी की प्राथमिकता नहीं रह जाएगा। तब याद करने और याद रखने के बजाय इम्तहान इस बात का होगा कि विद्यार्थी में तथ्यों को समझने, उनका उपयोग और विश्लेषण करने की कितनी क्षमता है।

यों भी इंटरनेट के जमाने में दिमाग में रोज जानकारी जमा करने की जरूरत नहीं रह गई है, हर चीज के बारे में जानकारी मौजूद है और वह फौरन हासिल की जा सकती है। लेकिन परीक्षा का पैमाना वही चला आ रहा है जो दशकों पहले था। आज यह आंकना ज्यादा जरूरी है कि विद्यार्थी को संबंधित अवधारणा की कैसी समझ है और वह अपने समय-समाज के प्रति, दुनिया में हो रहे परिवर्तनों के प्रति कितना जागरूक है। यह मान लेना सही नहीं होगा कि अगर पुस्तक और नोट्स रखने की इजाजत दे दी गई, तो विद्यार्थियों पर पढ़ने का दबाव खत्म हो जाएगा। सच तो यह है कि तब उन पर कहीं ज्यादा ध्यान से पढ़ने, पढ़े हुए को समझने, उसे व्याख्यायित और विश्लेषित करने की क्षमता हासिल करने का दबाव रहेगा। जो इस चुनौती का जितना ही सामना करेंगे, पुस्तक और नोट्स का भी उतना ही कारगर उपयोग कर पाएंगे। अलबत्ता ऐसी प्रणाली दो और तकाजों की मांग करती है। एक तो यह कि प्रश्नपत्र का ढांचा बदलना होगा। दूसरे, शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम की भी नए सिरे से रूपरेखा बनानी होगी। पूरे देश में दसवीं और बारहवीं के लिए समान प्रश्नपत्र हों, इस पर मंत्रालय की ओर से गठित समिति को विचार करना है। पर प्रश्नों का ढर्रा बदलना और उसे खुली परीक्षा प्रणाली के अनुरूप बनाना सिर्फ प्रशासनिक निर्णय से नहीं हो सकता, इसके लिए ऐसे अकादमिक उद्यम की जरूरत होगी जिसमें नवाचार की समझ भी हो। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने खुली परीक्षा प्रणाली में रुचि दिखाई है, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि वह इन तकाजों को भी गंभीरता से लेगा।