मगर पिछले कुछ समय से सत्ताएं ऐसी अभिव्यक्तियों को लेकर असहज और आक्रामक नजर आने लगी हैं। महाराष्ट्र पुलिस ने एक गायक के खिलाफ इसलिए विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है कि उसने अपने एक गीत में तथाकथित रूप से महाराष्ट्र सरकार और प्रशासन के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी की है।

यह सरकारों की असहनशीलता का नया प्रमाण है। गायक ने अपना गीत सोशल मीडिया पर डाला था और वह देखते ही देखते काफी लोकप्रिय हो गया। उसी को लेकर गायक के खिलाफ शांति भंग करने की मंशा से जानबूझ कर अपमान करने, समुदायों के बीच वैमनस्य, शत्रुता और दुर्भावनापूर्ण बयान देने और इलेक्ट्रानिक माध्यम पर अश्लील सामग्री परोसने के आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया है।

हालांकि अनेक लोगों का कहना है कि इस गाने में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे आपत्तिजनक कहा जा सके। यह कोई नया मामला नहीं है। इससे पहले महाराष्ट्र में ही एक दूसरे गायक को इसी तरह कानून के शिकंजे में लिया गया था। कुछ ही दिन बीते, जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक भोजपुरी गायिका को इसी तरह सरकार का अपमान करने के आरोप में नोटिस भेजा था।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी का अपमान करने की मंशा से कुछ भी बोला, लिखा या गाया नहीं जा सकता। मगर इसकी व्याख्या करना कई बार थोड़ा टेढ़ा काम हो जाता है। अगर सरकारें खुद मान लें कि किसी के लिखने, बोलने या गाने से उसे चोट पहुंची है, तो संबंधित व्यक्ति के लिए यह सिद्ध करना कठिन हो जाता है कि वास्तव में उसकी मंशा वह नहीं थी, जैसा सरकार समझ रही है।

अब तो सरकारों में यह प्रवृत्ति जटिल होती गई लगती है कि वे अपने विरुद्ध किसी भी तरह की अभिव्यक्ति को सहन नहीं कर पातीं। पश्चिम बंगाल में पुलिस ने एक व्यंग्य चित्रकार को इसलिए गिरफ्तार कर लिया था कि उसने ममता बनर्जी सरकार पर तल्ख टिप्पणी करते हुए चित्र बनाए थे। केंद्र सरकार पर भी अनेक लोगों को इसलिए जेल भेजने के आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने उसकी नीतियों पर अंगुली उठाते हुए टिप्पणियां की थीं।

महाराष्ट्र का मामला ऐसे समय में सामने आया है, जब पिछले ही हफ्ते सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त टिप्पणी की थी कि सरकारें अगर अपने विरुद्ध टिप्पणियां बर्दाश्त नहीं करतीं, तो इसका अर्थ यही होता है कि वे चाहती हैं कि सिर्फ उनकी तारीफ में लिखा-बोला जाए। इतिहास गवाह है कि राजशाही के वक्त भी लोकगायक राजाओं की अनीतियों के खिलाफ गीत रचते और गाते थे।

अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध भी बहुत सारे गीत लिखे गए, जिन्हें सरकार ने जब्त करा लिए, उनके रचनाकारों, गायकों को जेल भेज दिया। इसके लिए बाकायदा कानून बना दिया गया। ब्रिटिश हुकूमत की वह प्रवृत्ति अभी खत्म नहीं हुई है। मगर चिंता की बात है कि एक स्वतंत्र देश में अगर सरकारें इस तरह किसी के रचने, गाने पर अंकुश लगाती रहेंगी, तो फिर सभ्यता और संस्कृति की शक्ल वास्तविक रह ही नहीं जाएगी।

लोकतांत्रिक सरकारों से तो अपनी नीतियों, फैसलों के खिलाफ आने वाली टिप्पणियों को भी सुनने, उन्हें सहन करने और फिर जरूरत के मुताबिक उनमें सुधार करने की अपेक्षा की जाती है। आखिर सत्ता में लोग जनता द्वारा चुने जाकर ही पहुंचते हैं, फिर उन्हें जनता की प्रतिक्रियाओं पर ऐसी दमनात्मक कार्रवाई करनी ही क्यों चाहिए।