केरल में वायनाड के मेप्पाडी के पास सोमवार की रात को अचानक हुए भूस्खलन से जैसी तबाही हुई, उससे एक बार फिर यही रेखांकित हुआ है कि कुदरत के सामने समूची व्यवस्था कई बार लाचार हो जाती है। हालांकि प्रकृति के कहर को रोका भले न जा सके, लेकिन इससे बचाव के उपाय जरूर किए जा सकते हैं, ताकि जानमाल के नुकसान को कम से कम किया जा सके।
वायनाड में रात के दो-तीन बजे को बाद तीन बार भूस्खलन हुआ और उससे वहां अब तक सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, करीब सौ लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया और काफी लोग लापता बताए जा रहे हैं। हताहतों की संख्या और बढ़ सकती है। यों राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल के कर्मचारियों सहित अन्य महकमों के राहतकर्मियों ने बचाव के लिए हर संभव प्रयास किया है, मगर त्रासदी है कि भूस्खलन से तबाह एक क्षेत्र पूरी तरह से अलग-थलग हो गया, जहां पहुंचना आसान नहीं है। भारी बारिश की वजह से राहत कार्य में बाधा पेश आई है।
गौरतलब है कि केरल में पिछले कुछ दिनों से लगातार भारी बारिश हो रही है, जिससे कई जगहों पर जनजीवन अस्त-व्यस्त है। मगर अब वहां कई जगहों पर बाढ़ और भूस्खलन जैसी त्रासदी भी दिखने लगी है। वायनाड में पहले भी घनघोर बारिश और उसकी वजह से भूस्खलन की घटनाएं होती रही हैं। मगर सोमवार रात वहां जो हुआ, उसने वायनाड के साथ-साथ सभी जगहों के लोगों के सामने एक खौफ का मंजर पैदा कर दिया है।
पहाड़ों के बीच बसे और हरा-भरा स्वर्ग कहे जाने वाले वायनाड की पारिस्थितिकी को बेहद नाजुक माना जाता है। पश्चिमी घाट के नजदीक होने की वजह से वहां भूस्खलन का खतरा बना रहता है। पश्चिमी घाट में तीव्र ढलान है और मानसून में भारी बारिश से मिट्टी इतनी गीली और ढीली हो जाती है कि भूस्खलन के मामले बढ़ जाते हैं। जाहिर है, यह स्थिति अगर कुदरतन पैदा होती है, तो इसे तत्काल रोकना शायद मुमकिन नहीं है, मगर हर वर्ष बारिश के मौसम में भूस्खलन की आशंका के मद्देनजर बचाव के एहतियाती इंतजाम जरूर किए जा सकते हैं।