करीब एक दशक पहले किसी ने सोचा नहीं था कि यूपीआइ से लेनदेन की नई प्रणाली उनकी जिंदगी बदल देगी। बहुत सारे लोगों के लिए धन हस्तांतरण से लेकर बिजली-पानी के बिलों को भरना और कहीं भी कुछ भी खरीदारी करना आसान हो गया। अब एक तरह से लोगों की जेब में बैंक है, जिसके जरिए वे कभी भी डिजिटल लेन-देन कर सकते हैं। मगर यूपीआइ से भुगतान में कुछ जोखिम और चुनौतियां भी हैं, जिनका निवारण अभी तक नहीं किया जा सका है।

कई तरह की ठगी, खाते से पैसे उड़ा लिए जाने जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं। मगर इसके अलावा लेन-देन में विफलता आम समस्या है जो आमतौर पर नेटवर्क की दिक्कत या ‘सर्वर डाउन’ हो जाने से पैदा होती है। हैरत की बात है कि पिछले कुछ समय से यूपीआइ के जरिए लेन-देन में अड़चन की स्थिति बार-बार आने के बावजूद उसे दूर करने के ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं।

डिजिटल भुगतान में तकनीकी खराबी

यह विचित्र विरोधाभास है कि एक ओर नागरिकों को डिजिटल भुगतान के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, तो दूसरी ओर उन्हें तकनीकी खराबी का सामना करना पड़ रहा है। पिछले पंद्रह दिनों में तीसरी बार शनिवार सुबह जो दिक्कत शुरू हुई, वह दोपहर तक जारी रही। इस बीच सैकड़ों लोगों ने इसकी शिकायत की। सवाल है कि अगर बार-बार व्यवधान होगा, तो लोग डिजिटल लेन-देन को कैसे सुविधाजनक और सुरक्षित मानेंगे।

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यह सच है कि यूपीआइ ने भारत में भुगतान परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है। देश-दुनिया के किसी हिस्से में बैठा भारतीय अब यूपीआइ के जरिए लेन-देन करने लगा है। बड़ी संख्या में एक वर्ग डिजिटल भुगतान में दक्ष हो गया है। मगर इस क्रम में साइबर जोखिम के साथ जो तकनीकी दिक्कतें सामने आ रही हैं, यह चिंता का विषय है। इससे उनका डिजिटल लेनदेन से विश्वास टूटेगा।

पारंपरिक भुगतान को फिर से प्राथमिकता

उनमें ऐसी आशंका भी पैदा होंगी कि उनका भेजा पैसा कहीं अटक न जाए। ऐसे में लोग पारंपरिक भुगतान को फिर से प्राथमिकता देने लगेंगे। लगातार उन्नत हो रही तकनीक के बावजूद अगर डिजिटल लेन-देन में विफलता सामने आती है, तो जाहिर है कि इसमें कोई तकनीकी कमी है। ऐसे में डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे नागरिकों के कदम ठिठक सकते हैं।