आम जीवन में आधुनिक तकनीकी के प्रसार से कई स्तर पर लोगों को सुविधा होने के दावे तो किए जा रहे हैं, लेकिन सच यह है कि इसके साथ-साथ जोखिम का दायरा भी तेजी से फैल रहा है। खासकर खरीद-फरोख्त और पैसों के लेनदेन में जिस तरह के फर्जीवाड़े सामने आ रहे हैं, उसे देखते हुए यह चिंता अब बढ़ रही है कि इंसान की जिंदगी को आसान बनाने वाली ये तकनीकें क्या ठगी का हथियार और लोगों के लिए जोखिम की वजह भी बन रही हैं।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान किसी सामान की खरीदारी या अन्य किसी सेवा के बदले पैसा चुकाने के लिए आनलाइन माध्यम का उपयोग तेजी से बढ़ा है। इसमें एक मुख्य प्रचलित तरीका ‘क्यूआर कोड’ को ‘स्कैन’ करना है, जिसके जरिए लोग अपने खाते से पैसा दूसरे के खाते में भेज देते हैं। देखा जाए, तो यह पैसे के लेनदेन का एक आसान तरीका लगता है। मगर अब इसमें जिस तरह के फर्जीवाड़े सामने आने लगे हैं, उससे यह साफ है कि यह माध्यम भी अब पूरी तरह सुरक्षित नहीं रह गया है।

मध्य प्रदेश से सामने आया क्यूआर कोड से छेड़छाड़ का मामला

दरअसल, मध्यप्रदेश के खजुराहो में कुछ जालसाजों ने कई दुकानों के बाहर लगे ‘क्यूआर कोड’ को चुपके से अपने ‘क्यूआर कोड’ से बदल दिया और ग्राहकों द्वारा दुकानदारों को भेजे गए पैसे अपने खाते में ले लिया। गनीमत है कि मामला सामने आने के बाद पुलिस ने खोजबीन शुरू की और आरोपी पकड़ में आ गया। देखने में यह ठगी की कोई छोटी घटना लगती है, मगर इससे पता चलता है कि खरीदारी या पैसों के लेनदेन के मामले में जिस डिजिटल माध्यम को सबसे सुरक्षित और पारदर्शी बताया जा रहा है, उसमें किस स्तर के खतरे हैं।

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इसके अलावा, ‘डिजिटल अरेस्ट’ या ओटीपी मंगवा कर बैंक खाता खाली कर देने के मामले आए दिन सामने आ रहे हैं। जैसे-जैसे बाजार में खरीदारी या किसी अन्य मद में भुगतान करने के लिए ‘क्यूआर कोड’ या डिजिटल माध्यम का विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे नकद लेनदेन करने वालों के सामने मुश्किलें पेश आ रही हैं। डिजिटल ठगी के बढ़ते मामले तत्काल इससे सुरक्षा का तंत्र विकसित करने की जरूरत रेखांकित करते हैं।