तेजी से बदलते दौर में नई तकनीकों के उपयोग को वक्त की जरूरत के तौर पर देखा जा रहा है। इसी क्रम में आम जिंदगी में संवाद से लेकर पढ़ाई-लिखाई और लेन-देन जैसे तमाम मामले अगर डिजिटल तकनीक के दायरे में आ रहे हैं तो यह स्वाभाविक है। इसी के मद्देनजर ‘डिजिटल इंडिया’ का नारा भी दिया गया, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इंटरनेट आधारित तकनीकों के उपयोग के प्रति आकर्षित हों। विडंबना यह है कि जिस तेजी के साथ डिजिटल यंत्रों का उपयोग बढ़ा है, उसी अनुपात में इसमें सुरक्षित गतिविधियों का ढांचा विकसित नहीं हुआ है।

इससे उपजने वाले जोखिम रोज नए और जटिल स्वरूप में सामने आ रहे हैं। अमूमन हर रोज देश के किसी हिस्से से डिजिटल धोखाधड़ी की खबरें आती हैं और उसमें किसी की मेहनत की कमाई के लाखों रुपए अलग-अलग तरीके से लूट या उड़ा लिए जाते हैं। ऐसे मामले आम हैं, जिनमें सिर्फ किसी को फोन पर की जाने वाली बातचीत में उलझा कर उसे धोखाधड़ी का शिकार बनाया गया। सवाल है कि अगर देश में आधुनिक तकनीकों का विस्तार किया जा रहा है तो क्या इससे बचाव के इंतजामों को भी उतना ही अहम माना जा रहा है।

अनजान नंबर से आने वाले फोन से होती है धोखाधड़ी

गौरतलब है कि बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने यह कहा कि डिजिटल धोखाधड़ी हमारे लिए एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, इसलिए इस पर अंकुश लगाने के लिए ठोस प्रयास किए जाने की जरूरत है। हालांकि डिजिटल फर्जीवाड़े के मामलों में कोई अचानक उफान नहीं आया है, बल्कि पिछले कुछ वर्षों से लगातार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे यह साफ है कि आधुनिक तकनीक जितनी सुविधाजनक है, उतना ही यह जोखिम का वाहक भी बन रही है। किसी के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से फोन आता है और वह व्यक्ति बातों के जाल में इस कदर फंस जाता है कि अपने बैंक खाते से खुद ही लाखों रुपए भेज देता है।

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इसके कुछ ही पल बाद जब उसे अपने साथ हुई धोखाधड़ी के बारे में पता चलता है, तब तक देर हो चुकी होती है। पिछले कुछ समय से ऐसे मामले आम होते देखे गए हैं, जिसमें अनजान नंबर से आए फोन काल के जरिए किसी व्यक्ति को डरा-धमका कर ‘डिजिटल कैद’ की स्थिति में डाल दिया जाता है और फिर भयादोहन करके उसके बैंक खाते में जमा रकम को उड़ा लिया जाता है।

आर्थिक भ्रष्टाचार से लेकर अन्य आपराधिक गतिविधियों

अब ऐसी घटनाएं कोई नई नहीं रह गई हैं, लेकिन इसमें तेजी से होते इजाफे ने यह सवाल पैदा किया है कि जिन डिजिटल संसाधनों का विकास सुविधाजनक और सुरक्षित लेनदेन और अन्य गतिविधियों के लिए किया गया, आज उसी से उपजे खतरे से निपटने के तौर-तरीके आम क्यों नहीं हो पा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि आर्थिक भ्रष्टाचार से लेकर अन्य आपराधिक गतिविधियों पर लगाम लगाने या उन्हें खत्म करने के दावे के साथ डिजिटल दुनिया का विस्तार किया गया, कुछ जगहों पर व्यवहार में इसे अनिवार्य बना दिया गया, मगर आज हालत यह है कि सख्त कानूनों के बावजूद फर्जीवाड़ा करने वाले गिरोह साइबर संजाल में रोज नए तरीके अपना कर आम लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं।

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हालांकि एक समस्या डिजिटल यंत्रों के उपयोग में लापरवाही से लेकर प्रशिक्षण की सीमा की भी है, लेकिन इससे साइबर सुरक्षा का सवाल बेमानी नहीं हो जाता। निश्चित रूप से ‘डिजिटल इंडिया’ एक आकर्षक नारा है, लेकिन अगर इसमें जोखिम का पैमाना इतना ही ऊंचा रहता है, तो इसकी कामयाबी संदिग्ध ही रहेगी।