उपग्रहों को निर्धारित कक्षा में स्थापित करना अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती होती है। उपग्रह के रास्ता भटक जाने, नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट जाने या बीच में ही नष्ट हो जाने का खतरा बना रहता है। इस दृष्टि से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो की यह बड़ी कामयाबी है कि उसके वैज्ञानिकों ने आदित्य एल-1 को निर्धारित कक्षा में स्थापित कर दिया।
इसे सितंबर के शुरू में प्रक्षेपित किया गया था और अब वह पृथ्वी से करीब पंद्रह लाख किलोमीटर स्थित तय बिंदु लैग्रेंज प्वाइंट-1 पर पहुंच चुका है। इस बिंदु पर गुरुत्वाकर्षण शून्य होता है। वहां से सूर्य के त्रिआयामी चित्र मिलते हैं। इस तरह आदित्य एल-1 वहां स्थिर रह कर निरंतर सूरज का अध्ययन कर सकेगा। इससे पहले इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान तृतीय को सुरक्षित उतार कर अपने कौशल का परिचय दिया था।
आदित्य एल-1 भारत का पहला उपग्रह है, जो सूर्य की गतिविधियों का अध्ययन करने के उद्देश्य से भेजा गया है। हालांकि सूर्य का अध्ययन करने का यह पहला प्रयास नहीं है। अमेरिका, जर्मनी, जापान आदि देश इसके लिए अपने उपग्रह भेज चुके हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान एजंसी नासा अब तक चौदह उपग्रह भेज चुकी है।
सूर्य हमारे सौरमंडल का सबसे महत्त्वपूर्ण तारा है, जो ज्वलनशील गैसों का एक पिंड है। अनेक अनुसंधानों से स्पष्ट है कि सूर्य पर होने वाली हलचलों का सीधा प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है। मौसम प्रभावित होता है। पिछले कुछ वर्षों से इस बात को लेकर चिंता गहराती गई है कि सूर्य का धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है और उसकी वजह से सौरमंडल के अन्य ग्रहों की स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
पृथ्वी पर बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते वायुमंडल का गैसीय संतुलन बिगड़ रहा है। अध्ययनों से पता चल सकेगा कि गंभीर चिंता का विषय बन चुके जलवायु परिवर्तन में सूर्य पर होने वाली हलचलों का कितना योगदान है। इससे भविष्य में पैदा होने वाले खतरों का आकलन भी किया जा सकेगा। आदित्य एल-1 के साथ गए अनुसंधान उपकरण अलग-अलग विषयों का अध्ययन करेंगे, जिसमें सूर्य की किरणों, सौर लपटों और चुंबकीय प्रभाव का अध्ययन महत्त्वपूर्ण होगा।
एक आशंका लंबे समय से जताई जाती रही है कि अगर सूर्य से चलने वाली हवाओं की दिशा पृथ्वी की तरफ हो जाए, तो पृथ्वी की कक्षा में स्थापित तमाम उपग्रहों के लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा, सूचना तकनीक का सारा संजाल नष्ट हो सकता है। इस अध्ययन से ऐसी आशंकाओं की वास्तविकता पहचानी जा सकेगी।
पिछले कुछ वर्षों से पृथ्वी ग्रह को अनेक चुनौतियों से गुजरना पड़ रहा है। बढ़ता तापमान उनमें सबसे बड़ी चुनौती है। इसके चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं, फसल-चक्र पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अन्न उत्पादन में कमी दर्ज की जा रही है। बढ़ती आबादी के समक्ष यह संकट ज्यादा चिंताजनक है। वर्षा चक्र असंतुलित होने के कारण हर साल दुनिया के बहुत सारे देशों को भारी जान-माल का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
इसमें सूर्य से निकलने वाली चुंबकीय तरंगों का कितना योगदान है, यह भी आदित्य एल-1 के अध्ययनों से जाहिर हो सकेगा। इस तरह इस उपग्रह के प्रक्षेपण से न केवल कुछ और ब्रह्मांडीय रहस्यों की परतें खोलने में मदद मिलेगी, बल्कि मानव सभ्यता की सुरक्षा की दिशा में भी नए सिरे से सोचने, विचार करने और सामने खड़े संकटों से पार पाने के उपाय तलाशने के रास्ते खुल सकेंगे।