झारखंड के देवघर में सोमवार को तड़के भगदड़ मचने से ग्यारह लोगों की मौत हो गई और पचास लोग घायल हो गए। इस त्रासद घटना ने एक बार फिर देश में भीड़ प्रबंधन के मसले पर सोचने और कुछ ठोस पहल करने की जरूरत रेखांकित की है। देवघर का वैद्यनाथ धाम एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जहां दूर-दूर से लोग देव-दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। फिर, सावन के महीने में तो आने वालों का तांता लगा रहता है।

उन्हें मंदिर में प्रवेश के लिए कतारों में लगना और घंटों इंतजार करना पड़ता है। खबर है कि कतार के बेकाबू हो जाने की वजह से यह हादसा हुआ। पर इसके लिए भीड़ को ही दोषी और हादसे को सामान्य घटना मान लेना ठीक नहीं होगा। देवघर में लोगों की भीड़ आकस्मिक नहीं थी। जब पहले से पता हो कि लाखों लोग जमा होंगे, तो पल-पल की निगरानी और चौकसी की व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन जिस तरह से भगदड़ मची उससे जाहिर है कि इस तकाजे को न मंदिर के प्रबंधकों ने गंभीरता से लिया न प्रशासन ने। और ऐसा पहली बार नहीं हुआ है।

वैद्यनाथ धाम में ही 2007 में भगदड़ से पांच औरतों की मौत हुई थी। उस त्रासदी से क्या सबक लिया गया? पिछले महीने पुरी के रथयात्रा मेले में दम घुटने से दो औरतें मारी गर्इं और अत्यधिक भीड़ की वजह से दस लोग जख्मी हो गए। इस घटना से महज पांच रोज पहले आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी जिले में महापुष्करम मेले के दौरान भगदड़ मचने से उनतीस लोग मारे गए। पिछले साल अक्तूबर में पटना के गांधी मैदान में दशहरा मनाने के लिए इकट्ठा हुई भीड़ में से तैंतीस लोगों की जिंदगी भगदड़ की भेंट चढ़ गई।

देश के विभिन्न हिस्सों में हुए इस तरह के और भी वाकए गिनाए जा सकते हैं। इन सब में कुछ बातें सामान्य रही हैं। भीड़ नियंत्रण के बुनियादी सवालों से आंख मूंद ली जाती है। बड़ी तादाद में लोगों का इकट्ठा होना तय होने के बावजूद आवाजाही की सहूलियत पर ध्यान नहीं दिया जाता। कई जगह प्रवेश और निकास के रास्ते अलग-अलग नहीं होते। प्राथमिक या आपातकालीन चिकित्सा का इंतजाम देखने को नहीं मिलता।

कई बार अफवाह की वजह से अफरातफरी मच जाती है और वह भयावह भगदड़ का रूप ले लेती है। लेकिन यह भी आखिरकार निगरानी की खामी और किसी अप्रत्याशित स्थिति से निपटने के इंतजाम की कमी का ही नतीजा होता है। लेकिन इस सब के लिए शायद ही किसी को जिम्मेवार मान कर कार्रवाई की जाती है। अमूमन होता यह है कि मरने वालों के परिजनों और घायलों के लिए थोड़ा-सा मुआवजा घोषित कर छुट्टी पा ली जाती है।

देवघर के मामले में राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मृतकों के परिवारों के लिए दो-दो लाख रुपए और गंभीर रूप से घायलों के लिए पचास-पचास हजार रुपए का मुआवजा घोषित किया है। मगर मुआवजे और शोक प्रकट करने की रस्मी घोषणाओं से आगे जाकर भी सोचने की जरूरत है। जहां जानलेवा भगदड़ की घटनाओं के बीच ज्यादा अंतराल न हो, ऐसे हादसों की लंबी कतार हो और देश का कोई भी हिस्सा इससे अछूता न हो, वहां यह जरूरी है कि ऐसी घटनाएं रोकने के लिए कुछ कड़े नियम-कायदे बनाए जाएं।

 

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