हर वर्ष दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या के रूप सामने आता है। आज हालत यह है कि इसने लाखों लोगों की सेहत को जोखिम में डाल दिया है। सवाल यह है कि हर वर्ष कुछ महीने एक ही स्थिति रहने के बावजूद सरकार इस समस्या को काबू क्यों नहीं कर पा रही है। हर बार चंद कदम उठाए जाते हैं और जैसे ही मौसम बदलता है, सरकार हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाती है, यह जानते हुए भी कि अगले साल भी यही समस्या होगी। इस समय दिल्ली में पिछले तीन दिनों से वायु गुणवत्ता बेहद खराब श्रेणी में दर्ज की जा रही है। हालांकि इसकी एक वजह हवा की गति कम होना बताया जा रहा है।
गौरतलब है कि शीर्ष न्यायालय ने निर्धारित समय में और एक निश्चित मापदंड के साथ हरित पटाखे छोड़ने की अनुमति दी थी। मगर जिस तरह से नियमों का उल्लंघन किया गया, उससे साबित हो गया कि नागरिकों में दायित्व बोध का किस हद तक अभाव है। नतीजा यह कि बुधवार को दिल्ली से लेकर नोएडा और गाजियाबाद तक वायु गुणवत्ता सूचकांक तीन सौ से ऊपर चला गया। अन्य इलाकों से भी प्रदूषण के इसी तरह बेलगाम होने की खबरें आईं। सवाल है कि मनमानी का नतीजा किसे भुगतना होगा।
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गौरतलब है कि दिल्ली में बीते सोमवार को वायु प्रदूषण चार वर्षों के उच्चतम स्तर पर चला गया था। इस हवा को बिगाड़ने में निस्संदेह उन लोगों का भी हाथ रहा जो पटाखे छोड़ने की छूट का मनमाना दुरुपयोग कर रहे थे। हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में प्रदूषण कम होने की बात सरकारी स्तर पर कही गई है। जबकि दीपावली के अगले ही दिन आंखों में जलन और घुटन महसूस करने की शिकायतें आम थीं। पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आसमान धुंधला हो चुका था।
सरकार प्रदूषण से निपटने के लिए इस बार भी उन्हीं उपायों को अपना रही है, जो बहुत कारगर नहीं रहे हैं। यह बेहद निराशाजनक है कि राजधानी और आसपास बढ़ते प्रदूषण को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा। आज जरूरत इस समस्या का ठोस हल निकालने की है। यह नहीं भूलना चाहिए कि यह जीवन जीने के अधिकार से भी जुड़ा मसला है।
