शैक्षिक संस्थानों को आमतौर पर छात्राओं के लिए सुरक्षित परिसर माना जाता है। मगर ऐसी किसी जगह पर जब उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाई जाती है और धमका कर यौन उत्पीड़न किया जाता है, तो यह एक व्यापक चिंता का विषय बनता है। दिल्ली में वसंत कुंज स्थित एक प्रबंधन संस्थान में खुद उसके संचालक ने छात्राओं से जैसा बर्ताव किया, उसने संस्थान पर भरोसे को तार-तार कर दिया है।
गौरतलब है कि इस मामले का मुख्य आरोपी एक कथित स्वयंभू धर्मगुरु या बाबा है, जो संस्थान का एक संचालक भी था। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए छात्रवृत्ति के तहत पढ़ाई कर रही कई छात्राओं को वह काफी समय से अलग-अलग रूप से प्रताड़ित कर रहा था। हैरानी की बात यह है कि इतनी संवेदनशील शिकायत पर संस्थान के अधिकारियों ने तब सुध ली, जब विवाद ने तूल पकड़ लिया। एक शर्मनाक पहलू यह भी है संस्थान की महिला कर्मी पीड़ित छात्राओं पर आरोपी की बात मानने के लिए दबाव डालती थीं। संस्थान में अपने प्रभाव के कारण आरोपी न केवल अभद्रता करता रहा, बल्कि किसी भी कार्रवाई से बचता रहा। दूसरी ओर, भविष्य तबाह कर देने की धमकी से डरी छात्राएं खामोश रहीं।
इस पूरे मामले में न केवल संबंधित संस्थान, बल्कि कानून व्यवस्था की भी बड़ी नाकामी है। एक ऐसा व्यक्ति जिसका पुराना आपराधिक अतीत रहा हो, वह राजधानी के नामी प्रबंधन संस्थान का संचालक कैसे बन जाता है या बना रहता है? संस्थान के परिसर से इस कथित स्वयंभू बाबा की महंगी कार भी बरामद हुई है, जिस पर राजनयिक नंबर वाली जाली प्लेट लगी थी।
आरोपी की आपराधिक गतिविधियां सामने आने के बाद संस्थान ने उससे सभी संबंध जरूर समाप्त करने की बात कही, लेकिन सवाल है कि यौन उत्पीड़न संबंधी गंभीर शिकायतों के बावजूद लंबे समय तक उसे प्रबंध समिति का सदस्य और पदाधिकारी कैसे बनाए रखा गया। जबकि धोखाधड़ी और छेड़खानी के मामले उस पर पहले से दर्ज थे। कमजोर तबकों के परिवारों और उनकी बच्चियों ने एक भरोसे के साथ पढ़ाई के लिए उस संस्थान को चुना होगा। मगर वहां उनके भरोसे से जैसा खिलवाड़ किया गया, इसकी जिम्मेदारी आखिर किसकी होगी!