दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच तकरार का फिलहाल कोई अंत नजर नहीं आता। सरकार के हर कदम पर उपराज्यपाल की ओर से अवरोध सामने आता है और फिर दिल्ली सरकार अदालत का दरवाजा खटखटाने चली जाती है। मुख्य सचिव की नियुक्ति को लेकर अब एक बार फिर दोनों के बीच का टकराव अदालत तक पहुंचा है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसका समाधान सुझाते हुए केंद्र सरकार और उपराज्यपाल से कहा है कि वे पांच अधिकारियों के नाम दिल्ली सरकार को सुझाएं, ताकि वह उनमें से किसी एक को मुख्य सचिव के रूप में चुन सके।

SC ने पूछा- आपस में मिल-बैठकर समाधान क्यों नहीं निकालते हैं

इस तरह बुधवार तक नए मुख्य सचिव के नाम की घोषणा हो सकती है। इस मामले की सुनवाई करते हुए एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने पूछा कि उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री राजनीतिक कलह से ऊपर उठ कर, आमने-सामने बैठ कर ऐसी समस्याओं का समाधान क्यों नहीं निकाल सकते। आप लोग हमें कोई ऐसा तरीका सुझाएं, जिससे सरकार चलाई जा सकती है। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय भी अब दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच के रोज-रोज के झगड़ों से तंग आ चुका है। मगर मुश्किल यह है कि केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल के जरिए दिल्ली सरकार पर हर तरह से नकेल कसने का कानूनी इंतजाम कर रखा है।

मुख्य सचिव पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाई है केजरीवाल सरकार

वर्तमान मुख्य सचिव का कार्यकाल इस महीने खत्म हो रहा है। उनकी जगह नए सचिव की नियुक्ति होनी है। दिल्ली सरकार ने वर्तमान मुख्य सचिव पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं और उससे संबंधित रपट भी उपराज्यपाल के पास भेजी है। हालांकि उपराज्यपाल ने रपट को राजनीतिक दुराग्रह से तैयार की हुई बताते हुए उस पर कोई कार्रवाई करने से इनकार कर दिया।

नए कानून के मुताबिक मुख्य सचिव की नियुक्ति का अधिकार एलजी को है

दिल्ली सरकार को लग रहा था कि केंद्र सरकार कहीं वर्तमान मुख्य सचिव का कार्यकाल न बढ़ा दे। इसलिए उसने अदालत में गुहार लगाई कि चूंकि नए दिल्ली सेवा कानून को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है, इसलिए बिना दिल्ली सरकार से सुझाव लिए मुख्य सचिव के कार्यकाल में विस्तार या फिर नए मुख्य सचिव की नियुक्ति नहीं की जा सकती। नए कानून के मुताबिक मुख्य सचिव की नियुक्ति का अधिकार उपराज्यपाल को है।

हालांकि जब यह नियम नहीं था, तब भी मुख्य सचिव की नियुक्ति में उपराज्यपाल की ही मर्जी चलती थी। इससे पहले दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग के प्रमुख की नियुक्ति के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय को जुलाई में दखल देना पड़ा था। तब भी अदालत ने यही कहा था कि ऐसे मामलों को उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री को मिल-बैठ कर क्यों नहीं सुलझाना चाहिए।

यों जबसे दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तभी से उपराज्यपाल और सरकार के बीच तकरार की स्थिति बनी रहती है। इसके पहले भी जो उपराज्यपाल आए, उनके साथ दिल्ली सरकार का तालमेल ठीक नहीं रहा। इसे लेकर दिल्ली सरकार ने अदालती लड़ाई भी लड़ी। आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि चुनी हुई सरकार को ही नीतियों से संबंधित फैसले करने का अधिकार है। उपराज्यपाल को उसमें दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।

तब केंद्र सरकार ने अध्यादेश जारी कर सरकार की सारी शक्तियों को उपराज्यपाल में केंद्रित कर दिया। फिर उसे कानूनी जामा भी पहना दिया गया। हालांकि इसे संविधान की मूल भावना के विरुद्ध उठाया गया कदम बताते हुए चुनौती दी गई है। मगर इसके बाद से दोनों के बीच तकरार कुछ अधिक तीखा हो गया है। इसका असर दिल्ली सरकार की सेवाओं और आखिरकार जनसामान्य पर पड़ रहा है।