दिल्ली की घनी आबादी वाले इलाकों में आग से बचाव के इंतजाम पर सवाल तो पहले ही उठते रहे हैं, वहीं सरकारी इमारतों में पिछले दिनों जिस तरह की खामियां सामने आई हैं, वह चिंता का विषय है। गर्मियों के मौसम में यहां हर वर्ष आग लगने की घटनाएं होती हैं, लेकिन इन्हें रोकने के लिए न तो समन्वित उपाय किए जाते हैं और न ही नागरिकों को जागरूक किया जाता है। जब सरकारी विभाग ही लापरवाही बरतेंगे, तो कई मंजिला भवनों और व्यावसायिक इमारतों में जान-माल की सुरक्षा की क्या ही उम्मीद की जा सकती है।

राजधानी की कई सरकारी इमारतें अग्नि सुरक्षा की कसौटी पर खरी नहीं

हाल ही में राजधानी की कई सरकारी इमारतें अग्नि सुरक्षा की कसौटी पर खरी नहीं उतर पाईं। जांच के दौरान यही हाल सरकारी अस्पतालों में दिखा। क्या कोई इस तथ्य को गंभीरता से लेगा कि कुछ अस्पतालों और सरकारी भवनों को इसी आधार पर अग्नि सुरक्षा प्रमाणपत्र जारी नहीं किए गए या उनका नवीनीकरण नहीं किया गया, क्योंकि उनमें आग से बचाव के पुख्ता इंतजाम नहीं थे। ऐसा संभव नहीं कि इमारतों से संबंधित विभागों के जिम्मेदार अधिकारियों को अपनी कमियां दूर करने के लिए आगाह न किया गया हो। फिर भी लापरवाही बरती जा रही है, तो इसे गंभीरता लिया जाना चाहिए।

दिल्ली के कुछ सरकारी भवन इतने पुराने हैं कि उनका मानकों पर खरा उतरना मुश्किल है। बावजूद इसके उन्हें अनापत्ति प्रमाणपत्र मिलते रहे हैं, तो यह जांच का विषय होना चाहिए। लोकनायक अस्पताल में वैकल्पिक सीढ़ियां बंद पाई गई हैं। दुर्भाग्यवश कोई घटना होती है, तो इसकी गंभीरता को समझा जा सकता है। हैरत की बात है कि आंबेडकर अस्पताल में वैकल्पिक निकास को स्थायी रूप से बंद पाया गया, यह जानते हुए भी कि रोज बड़ी संख्या में मरीज यहां आते हैं। आखिर इस तरह की लापरवाही के लिए कौन जवाबदेह है?

दो वर्ष पहले राजधानी के एक नर्सिंग होम में आग लगने से छह नवजात शिशुओं की मौत हो गई थी। उस समय वहां अग्नि सुरक्षा उपायों में भारी कोताही पाई गई थी। आज भी अगर राजधानी में बड़े अस्पताल नियमों की अनदेखी कर रहे हैं, तो समय रहते सरकार को कदम उठाना चाहिए।