अदालत ने कहा है कि दोषियों का जेल में आचरण अच्छा था, उन्होंने किताब लिखी, समाज सेवा की और डिग्री भी हासिल की। मगर केंद्र सरकार ने इस फैसले को नैसर्गिक न्याय नहीं माना है। उसका कहना है कि इस मामले में फैसला सुनाते वक्त उसे पक्षकार नहीं बनाया गया।
उसका पक्ष भी सुना जाना चाहिए था। केंद्र ने इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। हालांकि राजीव गांधी की हत्या के छह दोषियों को रिहा करने का प्रस्ताव तमिलनाडु मंत्रिमंडल ने चार साल पहले पारित कर राज्यपाल से इसके लिए अनुरोध किया था। दोषियों में से एक को मई में ही रिहा कर दिया गया था और तभी सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया था कि बाकी दोषियों को भी इसी आधार पर रिहा किया जा सकता है। मगर इस मामले में केंद्र सरकार की आपत्ति और फैसले पर पुनर्विचार की अपील उचित है।
हालांकि राजीव गांधी के परिजनों ने मानवीय सहानुभूति दिखाते हुए हत्या के दोषियों की रिहाई पर एक तरह से सहमति दे दी थी, मगर कांग्रेस पार्टी ने सर्वोच्च न्यायालय के ताजा फैसले का विरोध किया। केंद्र सरकार का तर्क वाजिब है कि याचिकाकर्ताओं की अपील में प्रक्रियात्मक कमी होने की वजह से केंद्र सरकार को पक्षकार नहीं बनाया जा सका, मगर पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के दोषियों की रिहाई से पहले उसका पक्ष सुना जाना चाहिए था। इस हत्या में शामिल लोगों ने बकायदा साजिश रच कर आतंकी गतिविधि को अंजाम दिया था। उनमें से तीन श्रीलंका के नागरिक हैं। अगर इस तरह समय से पहले किसी आतंकी घटना में शामिल लोगों को रिहा कर दिया जाएगा, तो उससे पूरी दुनिया में गलत संदेश जाएगा।
यह पूरी तरह से भारत सरकार की संप्रभु शक्तियों के अधीन आता है। केंद्र के तर्क को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। मगर जब करीब छह माह पहले सातवें दोषी को रिहा किया गया था, तभी केंद्र को यह याचिका दायर कर देनी चाहिए थी। देर से ही सही, इस मामले में अदालत से पुनर्विचार की अपेक्षा स्वाभाविक है
सामान्य अपराध के मामलों में इसलिए अदालत का समय से पूर्व रिहा कर देने का फैसला उचित मान लिया जाता है कि उनमें दोषियों के फिर से अपराध की दुनिया में न लौटने और उनसे समाज को कोई खतरा न होने का तर्क सहज स्वीकार्य होता है। मगर राजीव गांधी की हत्या सामान्य अपराध नहीं, बल्कि एक देश के पूर्व प्रधानमंत्री की साजिश रच कर आतंकवादी समूह के लोगों द्वारा की गई थी। उनसे बेशक अब समाज को कोई खतरा न हो, पर इस रिहाई से दूसरे आतंकियों का मनोबल बढ़ने से इनकार नहीं किया जा सकता।
भारत आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाए हुए है और दूसरे देशों के साथ लगातार इस मामले में सहयोग संबंधी समझौते करता रहा है। ऐसे में अगर उसी के एक प्रधानमंत्री की हत्या के दोषी आतंकवादियों को सजा पूरी होने से पहले ही रिहा कर दिया जाता है, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गलत संदेश जाएगा। फिर दूसरे आपराधिक मामलों में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे लोग भी इसे नजीर मान कर अपनी रिहाई की याचिका लगाना शुरू कर देंगे।