इस त्रासदीपूर्ण घटना से यही साबित होता है कि दुर्घटनाओं की शक्ल में ऐसी घटनाएं लगातार होती रहती हैं और उसके बावजूद व्यवस्थागत उदासीनता का सिलसिला कायम रहता है। चमोली में अलकनंदा नदी के किनारे नमामि गंगे परियोजना के तहत जल-मल शोधन संयंत्र में करंट लगने से हुई मौतों में आपराधिक लापरवाही का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि मंगलवार रात को ही वहां बिजली की चपेट में आकर एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।
लेकिन अगले दिन बुधवार सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे जब मृतक का पंचनामा चल रहा था, तब फिर से वहां लोहे के घेरे में करंट दौड़ गया। उसकी चपेट में मौके पर पुलिसकर्मियों और मृतक के कुछ रिश्तेदारों समेत सोलह लोगों की भी जान चली गई और कई अन्य बुरी तरह घायल हो गए। निश्चित रूप से यह किसी तकनीकी खराबी और उस पर नजर रखने, समय से उसकी मरम्मत करने में व्यापक कोताही की वजह से हुआ हादसा ही होगा, लेकिन इसकी प्रकृति ऐसी लगती है मानो इस लापरवाही की कोई सीमा नहीं थी!
सवाल है कि जब रात में करंट की वजह से ही एक व्यक्ति की जान जा चुकी थी, तब उसके कई घंटे के बाद भी वहां अन्य जगह पर बिजली कैसे प्रवाहित हो गई! जबकि यह बुनियादी तकाजा है कि पहली घटना का पता चलते ही सबसे पहले वहां बिजली के संपर्क को पूरी तरह काट दिया जाना चाहिए था।
सामान्य स्थितियों में भी अगर बिजली आपूर्ति बाधित होने की मामूली समस्या को दूर करना होता है, कोई मरम्मत करनी होती है तो पहले वहां बिजली का संपर्क काटा जाता है, ताकि किसी धोखे की स्थिति में भी लोग सुरक्षित रहें। लेकिन एक व्यक्ति की जान चले जाने के बावजूद वहां बिजली को पूरी तरह काटना सुनिश्चित नहीं किया गया।
इस आपराधिक लापरवाही का नतीजा यह हुआ कि एक व्यक्ति की मौत से दुखी होकर वहां पीड़ित परिवार के प्रति संवेदना जताने पहुंचे कई अन्य लोगों की भी जान चली गई। अब सरकार की ओर से जांच और मुआवजे की घोषणा की गई है, इस घटना पर हर किसी को दुख भी होगा, लेकिन इसमें जिन लोगों का जीवन चला गया, उसकी भरपाई शायद नहीं हो पाएगी।
किसी भी हादसे का पहला सबक यह होना चाहिए कि कम से कम उसके बाद ऐसे पुख्ता इंतजाम किए जाएं, ताकि वैसी घटना दोबारा न हो। किसी परियोजना स्थल या अन्य निर्माण कार्यों के दौरान हादसों के लिहाज से सुरक्षा इंतजामों में किसी गड़बड़ी के बाद उसका तात्कालिक हल तो निकाल दिया जाता है, लेकिन यह ध्यान रखने की जरूरत नहीं समझी जाती कि अगर खामी को दुरुस्त करने के ठोस उपाय नहीं किए गए तो इसका खमियाजा और गंभीर रूप में सामने आ सकता है।
सुरक्षा इंतजामों में मामूली लापरवाही की भी कीमत किस रूप में सामने आती है, इसके त्रासद उदाहरण आए दिन देखने को मिलते हैं। विडंबना यह है कि ऐसे हादसों का सिलसिला बदस्तूर कायम रहने के बावजूद शायद कोई सबक नहीं लिया जाता है। ऐसे में घटनास्थल पर हुई लापरवाही के लिए वहां तैनात किसी कर्मचारी को जिम्मेदार मान लिया जा सकता है, लेकिन उसके ऊपर के तंत्र में निरीक्षण, जांच आदि करने से जुड़े समूचे तंत्र की क्या ड्यूटी होती है! किसी हादसे के बाद की औपचारिक कार्रवाई से हादसों पर लगाम नहीं लगाई जा सकती। उसके लिए ऐसे ठोस इंतजाम करने होंगे, ताकि वक्त रहते किसी खामी का पता चल सके और उसे दुरुस्त किया जा सके।