पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच गतिरोध जिस तरह से खिंचता जा रहा है, वह किसी भी रूप में अच्छा संकेत नहीं है। चीन के रवैए को लेकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर कई मौकों पर अपनी चिंता और नाराजगी का इजहार कर चुके हैं। गलवान घाटी में संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर वार्ताओं के जितने भी दौर चले और उनमें चीन की ओर से जितने आश्वासन दिए गए, उनमें से उसने अपना एक भी वादा नहीं निभाया।
ऐसे में उस पर कैसे भरोसा किया जा सकता है! न ही इस बारे में कोई अनुमान लगा पाना संभव है कि दोनों देशों के बीच यह मामला कब तक चलता रहेगा। गुजरे शनिवार को भी विदेश मंत्री ने एक साक्षात्कार में स्पष्ट किया कि चीन के साथ मौजूदा विवाद कितना लंबा चलेगा, इस बारे में कुछ भी कह पाना संभव नहीं है। जाहिर है, चीन अब तक जिस तरह का आक्रामक और दो मुंहा रुख अपनाए हुए है, उसमें किसी के लिए कुछ भी कह पाना जल्दबाजी ही होगी।
इस साल 15-16 जून की रात गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर चीनी सैनिकों ने जिस तरह से हमला किया था और बाद में भी ऐसे हमलों के प्रयास किए, उससे दोनों देशों के रिश्तों में गंभीर तनाव पैदा हो गया है। पिछले कुछ सालों में भारत और चीन के शीर्ष नेतृत्व में जिस तरह की शिखर वार्ताओं के औपचारिक और अनौपचारिक दौर हुए, चीनी राष्ट्रपचि शी जिनपिंग भारत आए, भारत के प्रधानमंत्री ने चीन की यात्रा की, उससे लग रहा था कि दोनों देशों के बीच रिश्तों के नए युग की शुरुआत होगी। लेकिन गलवान घाटी की घटना ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
चीन की इस हरकत ने हर भारतवासी के मन में आक्रोश पैदा होना स्वाभाविक है। अब संकट इसलिए ज्यादा गहरा रहा है क्योंकि पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर सैनिकों का जमावड़ा खत्म करने के लिए आठवें दौर की बातचीत में चीन ने पीछे हटने को लेकर जो सहमति जताई थी, उस पर भी वह गंभीर नहीं है।
मौजूदा गतिरोध नहीं टूटने का बड़ा कारण चीन का धोखेबाजी वाला रवैया है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद शांति और सद्भाव से सुलझे, इसके लिए 1996 में समझौता हुआ था। इस समझौते में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि कोई भी पक्ष एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे में गोली नहीं चलाएगा, न ही इस क्षेत्र में बंदूक, रासायनिक हथियार या विस्फोटक ले जाने की अनुमति है।
इसके अलावा, 2013 में किए गए सीमा रक्षा सहयोग करार में भी साफ कहा गया था कि यदि दोनों पक्षों के सैनिक आमने-सामने आ भी जाते हैं तो वे बल प्रयोग, गोलीबारी या सशस्त्र संघर्ष नहीं करेंगे। लेकिन गलवान घाटी में हमें क्या देखने को मिला?
चीन ने इन समझौतों की धज्जियां उड़ाईं और भारतीय सैनिकों को निशाना बनाया। इस साल सितंबर में मास्को में भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों की वार्ता में गतिरोध खत्म करने के लिए पांच सूत्री सहमति बनी थी, लेकिन इस सहमति को लेकर चीन ने कोई सकारात्मक प्रतिक्रया नहीं दिखाई। इसमें कोई संदेह नहीं कि अब भारत ने चीन को हर तरह से सबक सिखाने के लिए कमर कस ली है।
चीन के हर हमले का उसी की भाषा में जवाब देने को भारत की सेना पूरी तरह से तैयार है। ऐसे में गतिरोध को बनाए रखने की चीन की नीति उसे ही भारी पड़ेगी।

