मनुष्य और कुत्तों के बीच रिश्ते प्राय: दोस्ती के रहे हैं। मगर पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह कुत्तों के हमले की घटनाएं और रैबीज के मामले बढ़ रहे हैं, उसे लेकर स्वाभाविक ही चिंता पैदा हो गई है। कुछ साल पहले दिल्ली के जामिया इलाके में कुछ छोटे बच्चों को कुत्तों के नोच-नोच कर मार डालने की घटनाएं प्रकाश में आई थीं। उसके बाद देश के विभिन्न इलाकों से ऐसी खबरें आती रहीं। कुत्तों के काटने से फैलने वाले रैबीज से दर्दनाक मौतों के भी कई वीडियो प्रसारित हुए। अभी दिल्ली में एक मां जब अपने दो साल के बच्चे को गोद में लेकर जा रही थी, उस पर एक कुत्ते ने हमला कर दिया। किसी तरह उसने बच्चे को बचाया, तो दूसरे कुत्ते ने हमला कर दिया, जिसमें मां और बच्चा दोनों घायल हो गए। पुलिस ने इस मामले का संज्ञान लिया है।
सड़क पर सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी
मगर सवाल है कि आखिर आवारा कुत्तों से लोगों को सुरक्षा मुहैया कराने की जिम्मेदारी कौन लेगा। अनेक अध्ययनों से पता चला है कि कुत्तों में आक्रामकता बढ़ रही है और वे अब मनुष्य पर हमले अधिक करने लगे हैं। खासकर बच्चे उनके हमले का आसान शिकार बनते हैं। ऐसे में यह स्थिति और चिंताजनक हो गई है।
टीके लगाने में लापरवाही से बढ़ीं दिक्कतें
कुत्तों के हमले से बचाव के लिए कानून बनाया गया कि सरकार उनका बंध्याकरण कराएगी, ताकि उनकी वंश वृद्धि न हो सके। उन्हें टीके लगाए जाएंगे, ताकि उनके काटने पर रैबीज न होने पाए। मगर इस मामले में शिथिलता ही देखी जाती है। महानगरों में शिकायत करने पर कुत्ते पकड़ने वाली गाड़ी तो आ जाती है, मगर अक्सर उसे देख कर कुत्ते भाग जाते हैं और उन्हें न तो रैबीजरोधी टीके लगाए जा पाते हैं और न बंंध्याकरण हो पाता है। इसकी वजह से उनकी तादाद पर काबू पाना कठिन बना हुआ है। हालांकि कई आम लोग भी इस मामले में अपनी नागरिक जिम्मेदारी नहीं समझते। वे श्वान-प्रेम में उन्हें भोजन आदि देते रहते हैं, कई लोग तो उनके बंध्याकरण आदि का विरोध भी करते देखे जाते हैं।
कुछ संगठन पशु क्रूरता अधिनियम के हवाले से आवारा कुत्तों को संरक्षण प्रदान करते हैं। कुत्तों के प्रति मानवीय संवेदना अच्छी बात है, मगर उनकी वजह से अगर लोगों का राह चलना मुश्किल होने लगे, उनके काटने से किसी की जान पर बन आए, तो इसे किसी भी रूप में ठीक नहीं कहा जा सकता। दूसरे अनेक देशों में आवारा कुत्ते इस तरह परेशानी का सबब नहीं बनते, इसलिए कि उनका नियमित टीकाकरण किया जाता है। अगर वे किन्हीं स्थितियों में काट भी लें, तो रैबीज का खतरा नहीं रहता।
हालांकि पालतू कुत्तों की वजह से भी कई बार लोगों के लिए खतरा पैदा हो जाता है। कई मालिक अपने कुत्तों को बाहर ले जाकर लापरवाही से छोड़ देते हैं, और वे किसी पर आक्रमण कर देते हैं। ऐसे अनेक मामले प्रकाश में आ चुके हैं, जब कुत्तों की वजह से पड़ोसियों में मारपीट की नौबत आई और हत्याएं तक हो गईं। दिल्ली, मुंबई आदि शहरों में सरकार को नियम बनाना पड़ा कि कुछ विशेष प्रजाति के कुत्ते पालने वालों को उनका पंजीकरण कराना होगा। इस तरह पालतू कुत्तों पर तो नजर रखी जा सकती है, मगर बिना टीका वाले आक्रामक आवारा कुत्तों पर नजर रखने की जिम्मेदारी आखिर कौन निभाएगा। कायदे से नगर पालिकाओं को समय-समय पर इसके लिए विशेष अभियान चलाना चाहिए। उन्हें नागरिक सुरक्षा का अपना दायित्व कब समझ आएगा!