छह पहलवानों ने उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न, गलत तरीके से छूने, पीछा करने और डराने-धमकाने के आरोप लगाए थे। उनमें पंद्रह मामले यौन उत्पीड़न के थे। दस मामले गलत तरीके से छूने के थे। उसमें एक नाबालिग पहलवान के यौन उत्पीड़न का भी आरोप था।
इन शिकायतों के साथ इस साल फरवरी में महिला पहलवानों ने धरना-प्रदर्शन किया था। तब सरकार ने उन्हें समझा-बुझा और यह भरोसा दिला कर धरना उठाने पर राजी कर लिया था कि एक समिति इस मामले की जांच करेगी और तब तक कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद पर बृजभूषण शरण सिंह नहीं रहेंगे। मगर उस समिति ने इस मामले में कोई जांच नहीं की तो महिला पहलवान फिर से धरने पर बैठ गए।
उस धरने को खत्म कराने के तरह-तरह से प्रयास किए गए, मगर दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। सरकार ने भी कोई सकारात्मक रुख नहीं दिखाया। सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार लगाई, तब दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज करने की सक्रियता दिखाई, मगर मुकदमा दर्ज नहीं किया। उसने कहा कि पहले जांच करनी होगी कि महिला पहलवानों के आरोपों में कितनी सच्चाई है।
हालांकि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ जैसे संगीन आरोप लगे थे, उसमें तुरंत कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए थी, मगर पुलिस शिथिल बनी रही और कुछ गवाहों और आरोपियों को तोड़ने का समय मिल गया। इसका ही नतीजा था कि नाबालिग पहलवान ने अपना आरोप वापस ले लिया। फिर देश भर से महिलाओं के विरोध का स्वर उभरना शुरू हुआ। मगर पहलवानों के आंदोलन को कमजोर करने के तरह-तरह के हथकंडे अपनाए गए।
बृजभूषण शरण सिंह खुद को बेगुनाह बताते हुए पहलवानों के खिलाफ बयान देते रहे। यहां तक कि उन्होंने अपने पक्ष में अयोध्या में संतों का एक सम्मेलन भी आयोजित कर लिया, हालांकि उस पर रोक लग गई। मगर उन्होंने खुद एक विशाल रैली करके अपना दम दिखाया। फिर जिस दिन नए संसद भवन का उद्घाटन हो रहा था, महिला पहलवान और देश के विभिन्न हिस्सों से आई महिलाएं विरोध प्रदर्शन करते हुए नए संसद भवन की तरफ बढ़ रही थीं, तब पुलिस ने उनके खिलाफ दमनात्मक कार्रवाई की। जंतर मंतर के उनके धरना स्थल को उजाड़ दिया गया। इस तरह वह आंदोलन कुचल दिया गया। फिर महिलाओं ने कानूनी लड़ाई लड़ने का मन बनाया।
अब दिल्ली पुलिस ने अपने आरोप पत्र में स्वीकार किया है कि बृजभूषण शरण सिंह ने महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न किया, उन्हें गलत तरीके से छुआ और पीछा किया, डराया-धमकाया। पुलिस का कहना है कि यह आरोप पत्र उसने विभिन्न पहलवानों, प्रशिक्षकों, खिलाड़ियों आदि के पूछताछ के आधार पर तैयार किया है। उसने अदालत को कुछ गवाहों के नाम भी सुझाए हैं, जिनसे पूछताछ की जा सकती है।
इस तरह अब जाकर सही मायनों में बृजभूषण शरण सिंह पर शिकंजा कसना शुरू हुआ है। अभी तक तो वे अपने राजनीतिक रसूख के बल पर पुलिस कार्रवाई से बचते रहे, अपने को बेदाग बताते रहे, मगर अदालत में मामला पहुंचने के बाद उनका राजनीतिक रसूख शायद ही काम आ पाए। जिस तरह उन्हें बचाने की कोशिश की जाती रही, उसका लोगों में गलत संदेश गया, जिससे सरकार को भी खासी किरकिरी झेलनी पड़ी। देर से ही सही, इस मामले में अब इंसाफ की उम्मीद जगी है।