किसी देश की अर्थव्यवस्था इस पैमाने पर भी आंकी जाती है कि उसकी घरेलू बचत, प्रति व्यक्ति आय और क्रयशक्ति की स्थिति क्या है। मगर हमारे यहां घरेलू बचत लगातार गिरावट की ओर है। मौजूदा वित्तवर्ष में यह पिछले पांच दशक में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। भारतीय स्टेट बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वित्तवर्ष में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत में करीब पचपन फीसद की गिरावट आई और यह सकल घरेलू उत्पाद के 5.1 फीसद पर पहुंच गई।

गौरतलब है कि वित्तवर्ष 2020-21 में यह जीडीपी के 11.5 फीसद पर थी, जबकि महामारी से पहले 2019-20 में यह आंकड़ा 7.6 फीसद था। वित्त मंत्रालय ने घरेलू बचत में गिरावट पर सफाई देते हुए कहा है कि लोग अब आवास और वाहन जैसी भौतिक संपत्तियों में अधिक निवेश कर रहे हैं। इसका असर घरेलू बचत पर पड़ा है। मंत्रालय ने भरोसा दिलाया है कि संकट जैसी कोई बात नहीं है। सरकार ने यह भी कहा है कि पिछले दो साल में परिवारों को दिए गए खुदरा ऋण का 55 फीसद आवास, शिक्षा और वाहन पर खर्च किया गया है।

परिवारों के स्तर पर वित्तवर्ष 2020-21 में 22.8 लाख करोड़ की शुद्ध वित्तीय परिसंपत्ति जोड़ी गई थी। 2021-22 में लगभग सत्रह लाख करोड़ और वित्तवर्ष 2022-23 में 13.8 लाख करोड़ रुपए की वित्तीय संपत्तियां बढ़ी हैं। इसका मतलब है कि लोगों ने एक साल पहले और उससे पहले के साल की तुलना में इस साल कम वित्तीय संपत्तियां जोड़ी हैं।

सरकार के अनुसार ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि वे अब कर्ज लेकर घर और वाहन जैसी भौतिक संपत्तियां खरीद रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक पिछले दो साल में आवास और वाहन ऋण में दोहरे अंक में वृद्धि हुई है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि महामारी के बाद से लोग काफी सचेत हुए हैं। वे जोखिम वाले निवेश से बच रहे हैं। दूसरी बात, बचत खातों पर ब्याज दर बहुत आकर्षक नहीं है।

ऐसे में लोग प्रतिभूतियों आदि में ज्यादा निवेश कर रहे हैं। यह भी घरेलू बचत कम होने का एक कारण है। एसबीआइ के मुख्य आर्थिक सलाहकार का भी कहना है कि शायद ब्याज दरें कम होने का विपरीत प्रभाव घरेलू बचत पर पड़ा है। आम लोगों का रुझान भौतिक संपत्तियों की तरफ बढ़ा है।

सरकार चाहे जो तर्क दे, पर घरेलू बचत का लगातार गिरना कोई अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता। घरेलू बचत सामान्य सरकारी वित्त और गैर-वित्तीय कंपनियों के लिए कोष जुटाने का सबसे महत्त्वपूर्ण जरिया होती है। देश की कुल बचत में महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने वाली घरेलू बचत का लगातार गिरना निम्न और मध्यवर्ग ही नहीं, पूरी अर्थव्यवस्था के लिए चिंता की बात है।

सरकार को मंदी के जोखिम से बचने के लिए राष्ट्रीय बचत दर को बेहतर रखना ही होगा। इसके पक्ष में अर्थशास्त्री स्पष्ट कहते हैं कि वर्ष 2008 की वैश्विक मंदी का असर भारत पर इसलिए भी कम पड़ा था कि भारतीयों की घरेलू बचत मजबूत स्थिति में थी। देश में घरेलू बचत घटने से ऐसे लोगों का आर्थिक प्रबंधन भी चरमरा रहा है।

जो शादी-ब्याह, सामाजिक रीति-रिवाज, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और त्योहारों आदि पर खर्च के लिए अपनी छोटी बचतों पर ही निर्भर होते हैं। सरकार को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में वृद्धि करनी चाहिए। इसमें कोई दो-राय नहीं कि बचत प्रोत्साहन से देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।